उठो कुछ जीवन में करने की ठाने समय बीत रहा है।
कुछ अपनी कुछ जमाने की माने समय बीत रहा है।
बहुत सीख लिया लड़ना हमनें अब धर्म के नाम पर,
जुट जाएं रता सी मानवता बचाने समय बीत रहा है।
हम ने तो झूठ, पाखंड, द्वेष, ईर्ष्या, नफरत है सीखी,
आओ प्रेम सत्कार की भाषा जाने समर बीत रहा है।
बारूदी मिसाइलों से धधक रहा देश हम में से कोई,
जाओ मिल कर राष्ट्रवाद समझाने समय बीत रहा है।
घिर रहे परिवार सभी हैं अपनी अपनी चारदीवारी में,
फिर से जुट जाएं चौपाल सजाने समय बीत रहा है।
विदेशी पहनावा छोड़ दो लाज,लज्जा,हया भी सीखो,
लौट के फिर ले आओ दिन पुराने समय बीत रहा है।
बुजुर्गों का सत्कार भाईचारे सा प्यार हम सब हैं भूले,
सीखो मान सम्मान में सिर झुकाने समय बीत रहा है।
पहन के चोला इंसान का तू बन गया है दरिंदा पगले,
अब से तू छोड़ दे कुकर्म मन माने समय बीत रहा है।
मान मर्यादा है जिस घर में वो सुखी परिवार कहलाता,
बहुत अच्छी बात कह गये सियाने समय बीत रहा है।
— शिव सन्याल