स्वार्थ के घोड़े
आजकल का यही जमाना
अंधे को दर्पण दिखलाना,
बेंच देते गंजे को कंघा
देखो! कैसा आ गया जमाना।
लंगड़े दौड़ लगाते दिखते
अंधे हमको राह दिखाते,
लूले हैं खैरात बांटते।
चोर उचक्के नेता बनकर
शहर शहर सरकार चलाते।
उल्टा पुल्टा हो गया सब
नहीं किसी की बात मानते,
अजब गजब दुनिया की माया
भगवान भी हैं अब माथ पीटते।
कैसा गजब जमाना यारों
रिश्वत से भगवान पटाते,
दारु के अड्डे पर जाकर
धूप दीप नैवेद्य चढ़ाते।
अंधेरे में अंधो को अब
आँखों वाले दर्पण दिखलाते,
स्वार्थ के घोड़े पर चढ़कर
नये नये आइना मंगाते,
जिसे जरुरत नहीं है यारों
उन्हें ही वो आइना दिखाते।