ग़ज़ल
कोई है, जो कि देखे इधर आईना ।
घूमता है शहर दर शहर आईना ।।
तेरे हर पल बदलते हुए रूप की
तुझको देता रहेगा ख़बर आईना।।
हर गली, मोड़ कमरे की दीवार से
रख रहा है यूँ तुम पर नज़र आईना।।
गो बदलते हुए दौर के साथ में
कर रहा है सफ़र दर सफ़र आईना।।
झूठ के साथ रहता नहीं है कभी
सच अयाँ है जिधर है उधर आईना।।
अयाँ- दिखाई देने वाला