ग़ज़ल – घबरायी होगी
ख़त मेरा वो पायी होगी।
जी भर वो इतरायी होगी।।
घर लगता है घर सा मुझको।
शायद घर वो आयी होगी।।
देख दरीचे से फिर मुझको।
मन ही मन शरमायी होगी।।
दी होगी द्वारे पर दस्तक।
पर थोड़ा घबरायी होगी।।
मुझे देखकर तस्वीरों में।
अपना मन बहलायी होगी।।
— आशीष तिवारी निर्मल