अंधी दौड़
बढते समय के साथ वह दो से चार हुए थे और कालान्तर में फिर से दो ही रह गए थे | उनके दोनों ही बेटे एक के बाद एक पढने के लिए विदेश गए | वहां का जीवन ऐसा रास आया कि वहीँ की नागरिक लड़की से शादी करके वह वहीँ के होकर रह गए |
दोनों बेटों के स्थाई तौर पर विदेश में बसने के बाद वह दोनों अकेलापन महसूस करने लगे थे | बढते परिवार का एहसास बनाए रखने के लिए वह दोनों अक्सर वीडियो कालिंग कर पोतों व पोतियों से बातें कर अपना अकेलापन दूर करने का नाटक भी करते |
बढती आयु के साथ शरीर कमजोर पड़ते जा रहे थे | पैसा कमाने की धुन में बच्चें अंधी दौड़ में लगे हुए थे | रिश्ते व रिश्तों के एहसास धीरे धीरे पीछे छूटते जा रहे थे |
अकेलेपन की कड़वाहट पत्नी अधिक देर न सह पाई | उसे दिल का दौरा पड़ गया | वह पत्नी को लेकर अस्पताल गया | बच्चों को फोन किया , तो रूखा सा उत्तर मिला , ‘’ यहाँ आफिस में जरूरी काम चल रहा है ,छुट्टी मिलनी मुश्किल है | पापा आप गलत न समझें , हम दोनों मिलकर आपके खाते में चार लाख डाल रहें हैं | जरूरत पड़ेगी तो और भी भेज देंगे | हम डाक्टर तो हैं नहीं ,आकर करेंगे भी क्या ? आप किसी अच्छे अस्पताल में जाकर मम्मी का इलाज करवा लीजिए | प्लीज पापा !’’
उत्तर सुनकर वह सन्न रह गए | पत्नी ने सुना तो उसे झटका लगा | उसका दिल घबराया ,सांस रुकने लगी | इससे पहले कि वह डाक्टर को बुला पाते ,वह उनसे दूर बहुत दूर जा चुकी थी | वह उसे पुकारते रहे ,पर कोई उत्तर न पाकर असहज हो उठे | बच्चों को फोन पर यह बताते हुए उनके हाथ कांप रहे थे ,वह मोबाइल पर केवल इतना ही बोल पाए ,’’ बेटा ,तुम्हारी मां हम सब को छोडकर…‘’|
‘’पापा, क्या हुआ मां को?’’
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— विष्णु सक्सेना