कविता

मैं भारत का संविधान हूं

शरशय्या पर लेट चुका हूं
अब तक सब कुछ देख चुका हूं
जितने यहां पे काम हुये हैं,
सब में हम बदनाम हुये हैं
मतलब की रोटी सभी सेंकते,
पन्ने फाड़ के सभी फेंकते
गलत सभी अनुवाद हैं करते,
मेरी गरिमा बर्वाद हैं करते
जो होता वो कहां लिखा है
बुझती यहां की सारी शिखा है
चंद लोग फल फूल रहे हैं
बाकी फांक धूल रहे हैं
चीर हरण क्यों मेरा करते
मानवता अपहरण हो करते
मैं भारत का संविधान हूं
आज कहां मैं विद्यमान हूं
कितने खंजर घोपेगे तुम
कितने पन्ने रोपोगे तुम
दुशासन की सभा है लगती
यहां कहां बातें हैं लगती
सबका तो ईमान बिका है
कहां पे भारत आ के टिका है
अवतार कोई जब तक न होगा
सुधार कोई तब तक न होगा
बीमारी अब बढ रही है
अंतिम छोर तक चढ़ रही है

राजकुमार तिवारी “राज”

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782