मुक्तक/दोहा

दोहरे मापदंड

शिया सुन्नी या अहमदिया, यदि कहीं मारा जाता है,
विश्व पटल पर मुस्लिम मारा, संदेश सुनाया जाता है।
शिया मारे सुन्नी को, या सुन्नी शिया को मार रहे,
मुस्लिम सबको मार रहा, हमें असहिष्णु बताया जाता है।
कश्मीर में हिन्दू मारे, कश्मीरी पंडित बतलाते,
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में, जाटों के बच्चे कहलाते।
कहीं ब्राह्मण कोई मरता, कहीं दलित कोई पिछड़ा,
जाति धर्म में बाँट हमें, अलग अलग हैं समझाते।
बियासी मुस्लिम जातियाँ, पिछड़ी जाति में आती हैं,
कुछ दलित अति दलित, कुछ उच्च बहुत कहलाती हैं।
सबकी मस्जिद जुदा जुदा, रिश्ते नाते भी अलग अलग,
दलित विरोधी हिन्दू है, सियासत सबको समझाती है।
जीवन मरण ख़ुशी के अवसर, शादी का मौक़ा होता,
वाल्मीकि से ब्राह्मण तक सबकी, ख़ुशियों का मौक़ा होता।
बुना हुआ है ताना बाना, सहभागिता रहे सनातन में सबकी,
पर्व त्योहारों के अवसर भी, सबको जुड़ने का मौक़ा होता।
— अ कीर्ति वर्द्धन