दोहा गीतिका
जीवन के पथ पर उगे,लम्बे लम्बे शूल
राहों की दुश्वारियां, बढ़ा रही है धूल
तूफानों का जोर है, आंधी है पुरजोर
खतरे में सब है यहां,करलो इसे कबूल
मार पड़ी है वक्त की,हावी हुआ विनाश
घर खंडहर होकर गिरा,हिली द्वार की चूल
भूकम्पो की तीव्रता,हिला रही हैं नींव
तीव्र दरारे बन गई,रहना यहां फिज़ूल
आँखों में आंसू थमें,है दहशत हर और
बुरा समय थम सा गया,समय नही अनुकूल
वक्त साथ देता नहीं, पड़ी आपदा घोर
बाढ़ फसल को खा गई,कैसे दे महसूल
कर्जदार भी मिट गये,बचे न साहूकार
दोनों ही जीवित नहीं,जो ऋण करें वसूल
— शालिनी शर्मा