कविता

आखरी पन्ना

जीवन की लिख रहा हूँ गणना
अपनी कहानी की अंतिम पन्ना
बहुत उतार चढ़ाव देखा जीवन में
कष्टों  को  झेला है      हमने

कितना सुन्दर था बचपन हमारा
बाल मित्रों का था सब का प्यारा
ना कोई ईष्या ना थी बैर कमाई
आपस में थे एक दूजै का भाई

जवानी की रेखा जब दस्तक दे आई
मन में उपजा बैर जग हुई    पराई
ज्योँ ज्यों बचपन दूर चला गया था
भाईचारा का रूख बदल गया  था

कोई जग में किसी का ना था अपना
जीवन मे पुरी ना हुई मेरी कोई सपना
ख्वाब अधूरे रह गये मेरे        सारे
जग क़ी रीत से मैं भी था      हारे

मतलब का है ये दुनियाँ सारा
कोई जीवन में ना बना हमारा
क्या अपने क्या वो थे बेगाना
हर कोई दीख रहा अनजाना

बड़ी से बड़ी मुसीबत को देखा है
पल पल जग गिरगिट सा बदला है
खून की आँसू था रुलाये अपने
कैसे कहूँ जीवन का मै सपने

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088