मुंडका के दर्द में मरहम
कुछ लोगों का जन्म ही घाव देकर सर्व सत्यानाश के लिए होता है, वहीं कुछ लोगों का जन्म ही मरहम बनकर इंसानियत की मिसाल बनने के लिए होता है. मुंडका के दर्द में बबलू जी ऐसे ही मरहम बनकर उभरे!
“कितनों को बचाया, उनकी गिनती कौन करे!”
“खुद को कितनी चोटें लगी हैं, उनकी परवाह कौन करे!”
“मुंडका के भीषण अग्निकांड में इंसानियत की अद्भुत मिसाल बन गया बबलू.”
“लगभग 30 लोगों को बचाने वाला देवदूत बन गया बबलू”
“हिम्मत, सूझबूझ और होशियारी का पर्याय बन गया बबलू.”
कौन हैं यह बबलू जी? बबलू जी पेशे से तो कबाड़ी का काम करने वाले हैं, पर वह किसी खबरदार खिलाड़ी से कम नहीं हैं!
मुंडका में कमर्शियल बिल्डिंग में लगी आग के बाद कुछ दूर बैठे बबलू जी की नजर भी इस पर पड़ी. खबरदार खिलाड़ी की तरह भागते हुए वे अपनी कबाड़ की दुकान पर पहुंचे. वहां से 12-15 गद्दे और रस्सी उठाकर भागते हुए बिल्डिंग के पास पहुंचे और नीचे गली में गद्दे बिछा दिए. तब तक पास की दुकान से एक क्रेन भी पहुंच चुकी थी. उन्होंने क्रेन की मदद से ऊपर रस्सी फेंकी. इसी रस्सी की मदद से लोग सुरक्षित नीचे पहुंचने में कामयाब रहे.
“बबलू जी इस अग्निकांड के न सिर्फ एक चश्मदीद हैं, बल्कि एक रीयल लाइफ हीरो हैं.”
“इस रीयल लाइफ हीरो ने तब तक दम नहीं लिया, जब तक कि इस आग में उनकी रस्सी पूरी तरह से जल नहीं गई.”
मुंडका हादसा : हर शख्स था बेबस…हर आंख में थे आंसू, अपनों को खोज रहे परिजन की बेबसी से निकलती आह, लेकिन यहां भी एक सच्चा इंसान था, जो बेबसों के बस बने, आंख से बहते हुए आंसुओं को पोंछने के लिए रूमाल बने, अपनों को खोज रहे परिजन की बेबसी से निकलती आह में परवाह बने.
“स्थानीय लोगों की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है। आज हमें जो नई जिंदगी मिली है, वह स्थानीय लोगों के सहयोग का ही नतीजा है.” बच्चे हुए भाग्यशाली लोगों का कहना है.
“रस्सी से कूदकर ना निकलते तो हम भी जिंदा नहीं बचते, जज्बे ने बचा ली कुछ जिंदगियां.” उनकी आह में भी निकली वाह!
इसी जज्बे और वाह का नाम है- बबलू जी: द मरहम.