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ग़ज़ल एकादश का विमोचन सम्पन्न

लोकप्रिय जनवादी ग़ज़लकार डॉ डी एम मिश्र द्वारा संपादित ग़ज़ल पुस्तक * ग़ज़ल एकादश * का ‘हिंदी श्री’ के पटल पर आज ऑनलाइन विमोचन सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के जाने माने साहित्यकार और आलोचक डॉ. जीवन सिंह रहे। इसकी अध्यक्षता ‘अलाव’ पत्रिका के संपादक दिल्ली के रामकुमार कृषक ने की। संयोजन डॉ डी एम मिश्र व भोलानाथ कुशवाहा ने किया। संचालन आनंद अमित ने किया। विशिष्ट वक्ता शैलेन्द्र चौहान रहे।
इस संग्रह की विशेषता यह है कि इसकी भूमिका भी डॉक्टर जीवन सिंह ने लिखी है । इसके साथ ही समस्त 11 ग़ज़लकारों की गजलों पर 11
समीक्षकों ने भी इसमें अपनी टिप्पणी दी है।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ जीवन सिंह ने कहा कि साहित्य लेखन के लिए साधना बहुत आवश्यक है और लेखक को अपने समय को समझना पड़ता है। हमारे शब्दों का संघर्ष इंसानियत और बराबरी के लिए है। हमारे सामने बराबरी के लिए चुनौतियां बहुत लंबे समय से खड़ी हैं जिसे लेखक को समझना होगा। इस ग़ज़ल संग्रह के रचनाकारों ने इन सभी बातों को उठाया है जिससे यह ग़ज़ल संग्रह अति महत्वपूर्ण है।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार रामकुमार कृषक ने कहा कि आज ग़ज़ल जीवन के विविध आयामों को छू रही है अपनी यात्रा में ग़ज़ल आज के समय को प्रदर्शित करने में पूरी तरह सक्षम है और अपनी मारक क्षमता के चलते वह लोकप्रिय भी है। यह समय एक तरह से ग़ज़ल का है।
विशिष्ट वक्ता शैलेन्द्र चौहान ने कहा कि इस ग़ज़ल संग्रह का तेवर अन्य किताबों से अलग है और यही इसकी विशेषता है।
ग़ज़ल एकादश के संपादक डॉ डी एम मिश्र ने कहा कि देश के तमाम ग़ज़लकारों के बीच से उत्कृष्ट ग़ज़लकारों को चुनना और उनकी रचनाएँ लेकर शीघ्र प्रकाशित कर पाना मेरे लिए चुनौती भरा कार्य था , जो आप सभी के सहयोग से कुशलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम के अंत में ग़ज़ल एकादश में सम्मिलित ग़ज़लकारों ने ग़ज़लपाठ किया।

रामकुमार कृषक ने सुनाया- हमने स्याही से उजाला लिक्खा। उनका कहना है कि काला लिक्खा।। राम मेश्राम ने पढ़ा- मौत का खौफ जनता से राजा को है। और जनता को किससे डरा चाहिए। भोलानाथ कुशवाहा ने सुनाया- इतनी दूरी ठीक नहीं, ये मजबूरी ठीक नहीं। दिन को रात बताओगे, ये बरजोरी ठीक नहीं। डॉ डी एम मिश्र ने पढ़ा- उजड़ रहा है चमन इसको बचाऊँ कैसे। लगी है आग मगर आग बुझाऊँ कैसे। डॉ प्रभा दीक्षित ने कहा- हर नजर भींगी हुई है बरगदों की छाँव में। एक ऐसा दर्द बरसा है हमारे गांव में। हरे राम समीप ने सुनाया- झुलसती धूप थकते पाँव मीलों तक नहीं पानी। बताओ तो कहां धोऊँ सफर की ये परेशानी। शिवकुमार पराग ने सुनाया- पाँव मेरे फिसल गए होते। मेरी कविता मुझे बचाती रही। डॉ भावना ने पढ़ा- किसी के ख़्वाब में वो इस क़दर तल्लीन लगती है /नदी वह गाँव वाली आजकल गमगीन लगती है। डॉ पंकज कर्ण ने सुनाया- वो सियासी हैं वो बातों को बदल कहते हैं। हम तो भूख और बेबसी को ग़ज़ल कहते हैं। कार्यक्रम को बड़ी संख्या में लोगों ने पसंद किया और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। हिंदी श्री की संस्थापिका कुमारी सृष्टि राज ने सभी का आभार व्यक्त किया।

*डॉ. डी एम मिश्र

उ0प्र0 के सुलतानपुर जनपद के एक छोटे से गाँव मरखापुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्म । शिक्षा -पीएच डी,ज्‍योतिषरत्‍न। गाजियाबाद के एक पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में कुछ समय तक अघ्यापन । पुनश्च बैंक में सेवा और वरिष्ठ -प्रबंघक के पद से कार्यमुक्त । प्रकाशित साहित्य - देश की प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में 500 से अधिक गीत, ग़ज़ल, कविता व लेख प्रकाशित । साथ ही कविता की छः और गजल की पांच पुस्तकें प्रकाशित, ग़ज़ल एकादश का संपादन। गजल संग्रह '- आईना -दर-आईना ,वो पता ढूॅढे हमारा , लेकिन सवाल टेढ़ा है , काफ़ी चर्चित। पुरस्कार - सम्मान ----- जायसी पंचशती सम्मान अवधी अकादमी से 1995, दीपशिखा सम्मान 1996, रश्मिरथी सम्मान 2005, भारती-भूषण सम्मान 2007, भारत-भारती संस्थान का - लोक रत्न पुरस्कार 2011, प्रेमा देवी त्रिभुवन अग्रहरि मेमोरियल ट्रस्ट अमेठी प्रशस्ति -प़त्र 2015, उर्दू अदब का - फ़िराक़ गोरखुपरी एवार्ड 2017, यू पी प्रेस क्लब का -सृजन सम्मान 2017, शहीद वीर अब्दुल हमीद एसोसियेशन द्वारा सम्मान 2018, साहित्यिक संघ वाराणसी का सेवक साहित्यश्री सम्मान 2019 आदि । अन्य साहित्यिक उपलब्धियाँ राष्ट्रीय स्तर के कुछ प्रमुख संकलनों में भी मेरी रचनाओं ( गीत, ग़ज़ल, कविता, लेख आदि ) को स्थान मिला है । जैसे -- भष्टाचार के विरूद्ध, प्राची की ओर , दृष्टिकोण , शब्द प्रवाह , पंख तितलियों के, माँ की पुकार, बखेडापुर, वाणी- विनयांजलि , शामियाना , एक तू ही, आलोचना नही है यह, परम्परा के पडाव पर गाँव, अजमल: अदब, अदीब और आदमी, युगांत के कवि त्रिलोचन, कथाकार अब्दुल बिस्मिल्ला: मूल्यांकन के विविध आयाम, हिन्दी काव्य के विविध रंग, समकालीन हिन्दी गजलकार एक अध्ययन खण्ड तीन- हिंदी ग़ज़ल की परम्परा सं हरे राम समीप , हिंदी ग़ज़ल का आत्मसंघर्ष, सं सुशील कुमार, ग़ज़ल सप्तक सं राम निहाल गुंजन आदि संकलनों में शामिल । अन्य - आकाशवाणी, दूरदर्शन, आजतक, ईटीवी , न्यूज 18 इंडिया आदि चैनलों पर अनेक कार्यक्रम प्रसारित। अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनों, मुशायरों व गोष्ठियों में सक्रिय सहभागिता। सम्पर्क -604 सिविल लाइन, निकट राणाप्रताप पी. जी. कालेज, सुलतानपुर एवं ए - 1427 /14, इंदिरानगर, लखनऊ । मोबाइल नं. 09415074318, 07985934703 ई मेल - [email protected], [email protected]