गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं धुआं भी उठे तो उठे लोग चुप हैं ज़रा सी नहीं फ़िक्र शायद किसी को ख़ज़ाना लुटे तो लुटे लोग चुप हैं कहां होगा फिर पंछियों का बसेरा शज़र ये कटे तो कटे लोग चुप हैं सभी को पड़ी है यहां सिर्फ़ अपनी पड़ोसी मरे तो मरे […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता जो खो नहीं सकता है वो पा भी नहीं सकता | सीने में जिसके दिल नहीं, दिल में नहीं हो दर्द इन्सान वो शख़्स ख़ुद को बता भी नहीं सकता आंसू गिरे तो लोग राज़ जान जायेंगे अपनों का दिया ज़ख़्म दिखा भी नहीं सकता […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में इंसानियत के हक़ में बोलने के जुर्म में मेरा गुनाह ये है कि मैं बेगुनाह हूं पकड़ा गया चोरों को पकड़ने के जुर्म में पहले तो पर कतर के कर दिया लहूलुहान फिर सिल दिया ज़बान चीखने के जुर्म में पंडित ने अपशकुन बता दिया था, इसलिए हैं […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ग़मज़दा आंखों का दो बूंद नीर कैसे बचे? ऐसे हालात में अपना ज़मीर कैसे बचे? धर्म के नाम पे तालीम दोगे बच्चों को? मुझको इस बात की चिंता कबीर कैसे बचे? एक भी कृष्ण नहीं, अनगिनत दुःशासन हैं आज की द्रौपदी का बोलो चीर कैसे बचे? हर तरफ घात लगाए हैं लुटेरे बैठे ऐसी सूरत […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बड़े  वो लोग हैं किरदार की बातें करते सिर्फ़ मोबाइलों से प्यार की बातें करते। बड़ी तेजी से बदलती हुई इस दुनिया में अब के बच्चे कहाँ परिवार की बातें करते। कभी उठा के देख लो निजी जीवन उनका सिर्फ़़ उपदेश में सुविचार की बातें करते। इन्हीं बुज़ुर्गों से सीखा था बोलना बेटे इन्हीं को […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मौत के बाद का किसने ज़हान देखा है कुछ कहा, कुछ सुना कोरा बयान देखा है। कोई जन्नत न मैंने कोई जहन्नुम देखा सर उठाया तो फ़क़त आसमान देखा है। जैसे पंछी उड़ा बहेलिया पड़ा पीछे उसके माथे पे चोट का निशान देखा है। उसकी आंखें जो बोलती हैं उसे सुनिए भी कैसे कहते हो […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये गगन , ये धरा सब तुम्हारे लिए दिल से निकले सदा सब तुम्हारे लिए भेज दो आंधियों को हमारी तरफ़ गुनगुनाती हवा सब तुम्हारे लिए मेघ अपने लिए हैं बरसते कहां नीर जो भी बहा सब तुम्हारे लिए मैं तो माली हूं सेवक हूं इस बाग़ का फूल जो भी खिला सब तुम्हारे लिए […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तमाशा देखना हो तो ज़माना दौड़ आता है लगे जब आग बस्ती में तो दरिया सूख जाता है ख़ुदा न ख़्वास्ता ठोकर कहीं लग जाये तब देखो जिसे कहते हो अपना ख़ास वह भी मुस्कराता है मगर अब भूल जाओ चांदनी रस्ता दिखाएगी बुरा जब वक़्त आता है सितारा डूब जाता है यही आता है […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पिता बनना बहुत आसां , पिता होना बहुत मुश्किल ग़मों का बोझ यह, हंसते हुए ढोना बहुत मुश्किल | यहाँ किससे कहूँ बच्चे मेरे भूखे कई दिन से अमीरों की यह महफ़िल है यहाँ रोना बहुत मुश्किल | सुबह से शाम तक जब काम करके लौटता हूँ घर वही चिंता का हो बिस्तर तो फिर […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरे हिस्से की ज़मीं बंजर है करना स्वीकार मगर हंसकर है | धान बोया था उगी घास मगर सारा इल्ज़ाम मेरे सर पर है | वो जो बिल्कुल पसीजता ही नहीं मोम हो करके भी वो पत्थर है | बाप ने फेसबुक से है जाना आजकल पुत्र उसका अफ़सर है| मेरा उसका मुकाबला कैसा बूंद […]