कलम लड़ेगी तलवारों से और झोंपड़ दरबारों से ।
ठहरो , वक्त को आने तो दो फूल लड़ेंगे खारों से ।।
जिस दिन जनता समझ जाएगी इनके हर नारे का सच ।
फिर न हासिल होगी सत्ता इनको झूठे नारों से ।।
खाली हाथ बेकारी वाले अपने रूप में आ गए तो ।
दुम दबाकर भागेंगे ये सत्ता के गलियारों से।।
जिस दिन भूखे पेटों ने भी जो कर दी हड़तालें तो ।
ये उतर के सड़क पे आ जाएंगे महंगी महंगी कारों से ।।
जन सेवा का नाटक करके लूट रहे जो जनता को।
इक दिन खुद घिर जाएंगे छल के इन किरदारों से ।।
शेरों की तासीर है इसकी जनता है यह जनता है ।
भेड़ बनाकर मत हांकवाना यूं अपने हरकारों से ।।
सोच रहे ये हक है अपना निर्धन फिरें उठाये जो ।
इक दिन धोखा खा बैठेंगे सच मे इन्ही कहारों से ।।
सत्ता पाकर निर्धन का हक खाया तो फिर रखना याद ।
रोज रोज फिर नहीं लदेंगे यूं फूलों के हारो से ।।
एक वतन में इंडिया भारत नहीं चलेगा नहीं चलेगा ।
दर्द ये वंचित हो जाएंगे सदा के लिए नज़ारों से ।।