पंचतारा चिंतन शिविर
पार्टी की दुर्गति लम्बे समय से हो रही थी। वह हर जगह दुत्कारी जा रही थी। हर जगह पार्टी को पटकनी खानी पड़ रही थी। जो भी चाहता था, वही पार्टी को उठाकर दे मारता था। पाँच-सात गालियाँ सुनाता वे अलग से। स्थिति सहनशक्ति से बाहर हो जाने के कारण उन्हें चिन्तन करने के लिए बाध्य होना पड़ा।
चिन्तन करने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। कई बार सरगना को उतारने-चढ़ाने की कसरत भी किसी काम नहीं आयी। अन्ततः यही तय किया गया कि पार्टी की दुर्गति बचाने के लिए एक गहरा चिन्तन शिविर आयोजित किया जाये। लगे हाथ गरीबी और महँगाई पर भी चिन्तन कर लेंगे, जिससे सरकार को गाली देने का भी अवसर मिलेगा। चिन्तन पूरे तीन दिन तक चलना था।
अब चिन्तन के लिए स्थान की खोज होने लगी, तो सबकी राय बनी कि पंचतारा होटलों में चिन्तन अच्छी तरह होता है। किसी धर्मशाला या तम्बू में यह पवित्र कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। वैसे भी गरीबी और महँगाई पर चिन्तन पंचतारा होटलों में ही अधिक अच्छी तरह हो सकता है। लिहाजा एक राज्य की राजधानी में कई पंचतारा होटल बुक कराये गये। उनमें पंचतारा भोजन की भी पूरी व्यवस्था की गयी। वैसे भी प्रतिनिधियों को चिन्तन शिविर में लाना टेढ़ीखीर होती है, इसलिए भी पंचतारा होटल में खाने और पीने की पूरी व्यवस्था करना अनिवार्य होता है।
निर्धारित समय पर चिन्तन प्रारम्भ हुआ। पार्टी की दुर्दशा के लिए अपनी विरोधी पार्टियों को ही नहीं, बल्कि देश की जनता को भी जमकर कोसा गया, जो उन्हें हर जगह से लात मारकर भगा देती है। गरीबी और महँगाई के लिए केन्द्रीय सरकार को खूब कोसा गया और अपनी भड़ास निकाली गयी। पार्टी की दुर्दशा सुधारने के लिए भी सबने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार सुझाव दिये, जिनमें कोई नयापन नहीं था।
तीन दिन तक जमकर खाने-पीने और चिन्तन करने का निष्कर्ष केवल यह निकला कि पार्टी में या उसके नेतृत्व में कोई कमी नहीं है, बस पार्टी वाले प्रतिनिधि ही ढीले हैं और जनता में भी खराबी आ गयी है। इसलिए इस खराबी को ठीक करने के लिए सबको फिर से जनता के पास जाने की सलाह दी गयी। इसके साथ ही पार्टी ने अपने उतारे हुए सरगना को फिर से उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया।
इस प्रकार देश की सबसे पुरानी पार्टी का सबसे नया पंचतारा चिन्तन शिविर सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। बोलो हमारे राज परिवार की जय !
— बीजू ब्रजवासी