कविता
अजब जिंदगी की गजब कहानी
बस आनी है और जानी है।
कुछ कर्म करनी है, कुछ धर्म करनी है
अपनी पहचान की छाप छोड़ जानी है।
एक सच्चाई जो सबको है मालूम
कुछ नहीं जानी है साथ सबको है पता,
फिर भी लोग धर्म- जाति के नाम पे क्यों आपस में हैं खता?
क्यों लड़ते हो जब एक दिन सब हो जाएगा लापता ?
रिश्ते – नाते माया- मोह की सब जाल है,
मतलब और स्वार्थ की सब सुर-ताल है,
इंसानो के रूप में भेड़ियों की खाल है
वाह रे भारत माँ के लाल गजब तेरा हाल है।
आओ सब मिलके स्वार्थहीन रिश्तों का करे निर्माण
जहाँ सब एक दूसरे को दे मोहब्बत और सम्मान ।
आने वाले पीढ़ियों को देकर जाए ऐसा पैगाम
ताकि वो समझे कि रिश्ते- नाते अमूल्य है
उनका नहीं है कोई दाम।
— मृदुल शरण