ग़ज़ल
न आने का बहाना कर लिया क्या
समय अपना सुहाना कर लिया क्या
इबादत की सभी ने इश्क़ की ही
किसी को अब निशाना कर लिया क्या
बदल ही अब गयी है ज़िंदगी तो
रिवाज़ों से निभाना कर लिया क्या
किसी ने रूप देखा तो कहा ये
सभी को ही दिवाना कर दिया क्या
सदा ही ख़ाक छानी राह की सुन
शुरू दफ़्तर पुराना कर लिया क्या
अभी ही जा बसे परदेस में तुम
पनाहों में ठिकाना कर लिया क्या
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’