बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया समझा कवि
नफरतें सब धुल जाएँ प्रेमगीत सुना कवि ||
जंग की तैयारी में बन रहे हथियार नये नये |
जग से हथियार छुड़ा ,सौहार्द पकड़ा कवि ||
क्यूँ अधीर हुए बैठी है युद्ध के लिए दुनिया |
दास्तां बर्बादियों की इसको सुना कवि ||
मानवता दिलो दिमाग में इनके भर इस तरह |
झगड़े मन्दिर मस्जिद के सारे मिटा कवि ||
यह दुनिया खूबसूरत थी और यह खूबसूरत है |
कांटे नफरतों के चुन फूल प्रेम के उगा कवि ||
सच स्वार्थ का दुनिया को बताना फर्ज तेरा |
फसलें मुहब्बतों की इन्हें उगाना सिखा कवि ||
उजाला ही उजाला हो जाये सरहदों के दरमियां |
दीये ऐसे लफ्जों के अब तू जला कवि ||
लू आतंक की झुलसाने लगी है धरती को |
बनकर घनश्याम तू आतंक पे छा कवि ||
हाथ की लकीरों से मुक्कद्दर नहीं बनता |
मन्त्र मेहनत का इनको तू बता कवि ||
कोई हक छीने नहीं मजलूम का बाँटने वाला |
कोई करे ऐसा तो जमाने को उकसा कवि ||
पहले बना तू दुनिया को जन्नत जैसी |
बेशक फिर रोज तू उत्सव मना कवि ||