कविता

वट सावित्री

जेष्ठ माह की कृष्ण अमावस को सुहागन
 करके यह व्रत,वर के नाम सोलह सिंगार कर लूँ हर दुख,पीड़ा, उलझाने मुझ पर पड़े
 वट की परिक्रमा कर मांगू वरदान, सदा मैं सुहागन रहूँ!!
 शताधिक चंद्रमा की कलाओं सा
 स्वयं को रती सी सजा लूँ
 सुसज्जित कर लूँ ऱहूँ मैं प्रेम में सजी
 अखंड कुमकुम में प्रिय, सदा आपको बसा लूँ!!
 आपकी हर संकट, विपदाओ में
 रक्षा सूत्र मैं मिल जाऊँ
 मिले उम्र भर साथ आपका
 माता सावित्री सी आपकी कवच बन जाऊँ!!
 वरदान मिले मेरे प्रेम को
 अंतिम सांस में भी मैं प्रथम आऊँ
 हे वट! सौभाग्य मेरा सुहाग रहे
 मैं अर्धांगिनी हमेशा सुहागन बन जाऊँ!!
 आज पुनः वह पावन दिन आया है
 जब मैं नारी अपना प्रभाव दिखलाऊँ
 बच ना सका हमारे हाथों से कोई
 मैं नारी उन यम के द्वार से भी जीत कर आऊँ!!
— राज कुमारी

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड