स्वास्थ्य

वनस्नान केन्द्र

वनस्नान केन्द्रों में निम्नलिखित निरापद और औषधिविहीन चिकित्साओं की सुविधा भी दी जा सकती है

• आश्वासन चिकित्सा (+सकारात्मक सोच से चिकित्सा, न्यूरोप्लास्टिसिटी) I
• श्वसन (प्राणायाम) चिकित्सा I
• मन्त्र चिकित्सा I
• ध्यान से उपचार I
• प्रार्थना से चिकित्सा I
• आस्था अथवा अध्यात्म चिकित्सा I
• अवचेतन मन की शक्ति से उपचार I
• स्पर्श चिकित्सा I
• अभ्यंग (मालिश) चिकित्सा I
• अग्निहोत्र चिकित्सा I
• सूर्य किरण चिकित्सा I

आश्वासन चिकित्सा
अथर्ववेद में विभिन्न चिकित्साओं का उल्लेख है, उनमें प्रथम स्थान आश्वासन चिकित्सा को प्राप्त है I अथर्ववेद के अनुसार सर्वप्रथम रोगी को आरोग्यप्राप्ति का पूर्ण आश्वासन दिया जाता है I रोगी के मनोबल को बढाकर रोग निवारण को प्रभावी किया जाता है और उसे गतिमान भी किया जाता है I जब रोगी को यह विश्वास हो जाता है कि वह कुशल उपचारक द्वारा दी जा रही औषधियों के सेवन से पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएगा, तो यह विश्वास फलीभूत होने लगता है I अधिकांश चिकित्सक और विशेष रूप से शल्य चिकित्सक शल्य क्रिया के पहले रोगी को आश्वस्त करते हैं कि बहुत ही साधारण शल्य चिकित्सा है और इससे वह रोगमुक्त हो जाएगा और यह शल्य चिकित्सा मैं प्रतिदिन ही करता रहता हूँ I ऐसे कथन से रोगी आश्वस्त हो जाता है और उसकी स्पीडी रिकवरी हो जाती है I अथर्ववेद में लिखा है कि यह चिकित्सा सभी प्रकार के अंग ज्वर (इन्फेक्शियस डिसीज), ह्रदय रोग अर्थात् रक्त वाहिकाओं में जमा वसा और साथ ही राज्ययक्ष्मादि रोग भी आश्वासन युक्त वाणी से दूर हो जाते हैं, यानी कि ट्यूबरकुलोसिस के अति संक्रामक (ओपन केसेस) में भी आश्वासन चिकित्सा काम करती है I वास्तव में आश्वासन से इम्यून सिस्टम सशक्त हो जाता है और रोग की गम्भीरता से उत्पन्न भय, चिन्ता और तनाव कम हो जाता है I चरक संहिता में हर रोग के साथ उपचारक द्वारा स्वस्ति वचन कहे जाने का उल्लेख है कि उसको मंगल वचन कहे जाएं और उसे पूर्ण स्वास्थ्य हेतु आश्वस्त किया जाए I एक श्लोक है-“आश्वासयेत सुहृदा तं वाक्येधर्मार्थ संहिते” अर्थात् जो रोगी का वास्तव में भला चाहने वाला है अर्थात् रोगी का भला चाहने वाले यानी उपचारक, उसे आश्वस्त करें I इससे रोगी की लुप्त, सुप्त विचार शक्ति जागृत हो जाती है और वही सकारात्मकता उसको स्वस्थ करती है I असाध्य रोगों से पीड़ित रोगियों में भी यह प्रभावी है I एक अमेरिकी शोध आलेख का शीर्षक ही आश्वासन चिकित्सा के प्रभावों को स्पष्ट करने में सक्षम है, Physician Assurance Reduces Patient Symptoms in US Adults. https://link.springer.com/article/10.1007/s11606-018-4627-z

आश्वासन चिकित्सा का वैज्ञानिक पक्ष: इसे समझने के लिए सेल्युलर बायोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक डॉ. ब्रूस लिप्टन का अध्ययन प्रासंगिक है I वे कहते हैं कि बीमारी के समय जब हम भय या चिन्ता के वशीभूत होकर नकारात्मक सोचते हैं, तो कार्टिसोल और एड्रिनेलिन जैसे रसायन निकलते हैं, जो इम्युनिटी को कम करते हैं, ह्रदय की धड़कनों को बढ़ा देते हैं, मस्तिष्क में एजिंग प्रोसेस को बढ़ा देते हैं, वसा जमने लगती है, अस्थियां कमजोर होने लगती हैं I और जब हम सकारात्मक सोचते हैं तो सारी प्रक्रिया विपरीत हो जाती हैं और व्यक्ति शीघ्र स्वस्थ होने लगता है I
तनाव और रोग प्रतिरक्षा प्रणाली के बीच के अन्तर्सम्बन्धों पर केन्द्रित 300 से अधिक अध्ययनों के 30 वर्षीय मेटा-विश्लेषण में पाया गया कि तनावपूर्ण स्थितियां रोग प्रतिरक्षा प्रणाली की कार्य प्रणाली को प्रभावित कर सकती हैं। यह पाया गया कि सकारात्मक सोच रोग प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अच्छी है, चिन्ता और तनाव को कम करती है और प्रसन्नता जैसी सकारात्मक भावनाओं को बढ़ाती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि निश्चित रूप से “सकारात्मकता” और स्वास्थ्य के बीच एक सशक्त और प्रभावी सम्बन्ध होता है । यह भी सुखद तथ्य है कि सकारात्मक दृष्टिकोण मस्तिष्क की दर्दनाक चोट, स्ट्रोक और ब्रेन ट्यूमर आदि में भी लाभदायक होता है I
आश्वासन चिकित्सा का आधुनिक स्वरूप न्यूरोप्लास्टीसिटी: अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोंसिन-मैडिसन के तहत यू.डब्लू मेडिकल स्कूल के न्यूरोसाइंटिस्ट प्रोफेसर डॉ.पॉल बैच रीटा, के पिता श्री पेड्रो को 1958 में सेरिब्रल इन्फार्क्शन (स्ट्रोक) के कारण एक साइड का पक्षाघात (पेरालिसिस) हो गया और उनकी वाणी चली गई, सभी चिकित्सकों का स्पष्ट कथन था कि अब वे कभी ठीक नहीं हो सकते हैं I पेड्रो का दूसरा बेटा, जॉर्ज बैच वाय रीटा साइकोलॉजिस्ट था, वह अपने पिता का मनोवैज्ञानिक उपचार कर रहा था, वह उन्हें झूठमूठ में आश्वस्त करता रहता था कि आप फिर से पूरीतरह स्वस्थ हो जाएंगे I चिकित्सीय अनुमानों के विपरीत कुछ समय बाद पेड्रो पूरीतरह स्वस्थ हो गए I चिकित्सकों के लिए यह अनहोनी और चमत्कारी घटना थी, उन्होंने एमआरआई करवाए, परन्तु अत्यधिक अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि सब कुछ जस का तस ही था I कुछ समझ में नहीं आ रहा था I पेड्रो की स्वाभाविक मृत्यु के बाद उनकी आटोप्सी (autopsy, मरणोपरांत विस्तृत विच्छेदन और अध्ययन) डॉ.मैरी जेन अन्गुइलर ने की और देखा कि उनके ब्रेन स्टेम का काफी बड़ा हिस्सा डैमेज था, जो रिपेयर नहीं हुआ था I परन्तु उनके न्यूरल पाथवे और साइनेप्सेस में परिवर्तन हुए थे, जिसके कारण पेड्रो डैमेज के उपरान्त भी आश्चर्यजनक रूप से स्वस्थ हो चुके थे, वास्तव में यह उनका अपने मनोवैज्ञानिक बेटे के आश्वासनों पर उनके पूरे विश्वास का परिणाम था I चूँकि इस पूरे मामले में न्यूरल कनेक्शन्स में हुए बदलाव ने ही चमत्कार किया था, इसलिए इसे न्यूरोप्लास्टिसिटी नाम दिया गया I पहले यह समझा जाता था कि न्यूरल कनेक्शन्स में बदलाव असम्भव होता है I इसीलिये अथर्ववेद में आश्वासन चिकित्सा को अन्य सभी चिकित्साओं में सर्वोपरि स्थान प्राप्त है I https://en.wikipedia.org/wiki/Paul_Bach-y-Rita
श्वसन चिकित्सा
सेण्टर फॉर माइंड बॉडी मेडिसिन, वाशिंगटन के संस्थापक और डाइरेक्टर डॉ. जेम्स गॉर्डोन, एम.डी. पिछले पचास साल से केवल गहरी सांस (डीप बेली रेस्पिरेशन) से अपने रोगियों का सफलतापूर्वक उपचार कर रहे हैं, पूरे विश्वभर में उनके लाखों फालोअर्स हैं I डॉ. जेम्स गॉर्डोन के अनुसंधानों के निष्कर्ष हैं कि गहरी सांस के सतत अभ्यास से तनाव भागने लगता है, मस्तिष्क शान्त और शिथिल हो जाता है, नीन्द अच्छी आती है, दर्दनाशक रसायनों का स्राव होता है, रक्त प्रवाह बढ़ जाता है, टॉक्सिन्स बाहर निकल जाते है और शरीर में फीलगुड रसायन एंडोर्फिन बढ़ जाते हैं I डॉ.ओट्टो वारबर्ग को कैंसर के कारणों की खोज के लिए 1931 का नोबल प्राइज मिला था I उनका निष्कर्ष था कि कोशिका के स्तर पर “एच” आयन (एसिडिटी) का बढना और ऑक्सीजन की कमी से कैंसर होते हैं I गहरी सांस से प्राणवायु की आपूर्ति होती है और कोशिकीय अम्लता भी कम हो जाती है, इसलिए गहरी सांस कैंसर जैसे रोगों में भी प्रभावी सिद्ध हो सकती है I बाबा रामदेव द्वारा व्यापक रूप से प्रचारित विभिन्न प्राणायाम भी गहरी सांस के ही वैदिक संस्करण हैं I
https://timesofindia.indiatimes.com/life-style/health-fitness/fitness/advantages-of-deep-breathing-exercises/articleshow/19213960.cms
https://goop.com/wellness/mindfulness/soft-belly-breathing-with-james-gordon/
मन्त्र चिकित्सा
चरक संहिता के अनुसार भगवान् विष्णु के हजार नामों में से किसी भी एक नाम का जप करने से सब रोग शान्त होते हैं I गांधीजी ने अपनी पुस्तक “कुदरती उपचार” में राम नाम को महाऔषधि और सभी रोगों में रामबाण के रूप में निरूपित किया है I मन्त्रों पर अनुसन्धान करने वाले न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. जेम्स हार्टजेल के अनुसार, प्रत्येक संस्कृत मंत्र एक विशेष आवृत्ति की ध्वनि तरंगें उत्पन्न करता है, जो हमारे शरीर की कोशिकाओं से मेल खाती हैं। जब ये दोनों तालमेल बिठाते हैं तो शरीर की कोशिकाएं कंपन करने लगती हैं। इससे शरीर से रोगकारी विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। यह कम्पन मस्तिष्क की कोशिकाओं को रिलेक्स करता है और रोगग्रस्त कोशिकाओं को रोगमुक्त करता है । कम्पन से मस्तिष्क की उन कोशिकाओं और ऊतकों का भी पोषण होता है, जो जीवन की गहरी समझ के लिए उत्तरदायी होते हैं I मनोविज्ञान और व्यवहार विज्ञान के कोर्सिनी विश्वकोश के अनुसार “अनुसंधानों से सिद्ध हुआ है कि मंत्र दोहराव से विभिन्न शारीरिक लाभ होते हैं, जैसे तनाव का स्तर कम होना, बढी हुई हृदय गति का कम होना, रक्तचाप में कमी, ऑक्सीजन की कम खपत, और मस्तिष्क में रचनात्मकता, सजगता, बुद्धिमता बढाने वाली अल्फा वेव में वृद्धि होती है ।“ नर्सिंग रिसर्च की वार्षिक समीक्षा, 2014 ने सुझाव दिया है कि यदि रोगी या व्यक्ति को मंत्रों में कोई विश्वास नहीं है, तो भी “मंत्र दोहराव” एक सरल, त्वरित, पोर्टेबल और निजी पूरक अभ्यास है, जिसका उपयोग एक सहायक चिकित्सा के रूप में किया जा सकता है। Nurses and Doctors Recommend Mantra for Some Conditions. पश्चिमी देशों में संस्कृत मन्त्रों को हीलिंग साउंड के नाम से जाना जाता है I मन्त्र जाप ध्यान को सुधारता है, मूड बेहतर करता है, मस्तिष्क और शरीर को शिथिल (रिलेक्स) और शान्त करता है I प्रतिदिन बीस मिनट के लिए किए गए मन्त्र जाप से अपेक्षित लाभ मिलना शुरू हो जाते हैं I
ध्यान चिकित्सा
ध्यान, मानव शरीर के ऑटोनामिक तंत्रिका तन्त्र के माध्यम से विभिन्न अंग संस्थानों को विश्रान्ति प्रदान करता है, वास्तव में ध्यान से सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम शान्त होता है, रोग प्रतिरोधी प्रणाली पर विपरीत प्रभाव डालने वाले तनावकारी रसायन और आक्रामकता उत्पन्न करने वाले रसायन कम हो जाते हैं और पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम हावी हो जाता है I ध्यान से उच्च रक्तचाप, इरिटेबल बावेल सिण्ड्रोम, अनिद्रा और विभिन्न प्रकार के दर्द में आराम मिलता है I अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि ध्यान से मस्तिष्क के हिप्पोकेम्पस और फ्रन्टल लोब में ग्रे मैटर की मात्रा बढ़ जाती है और इनका सम्बन्ध सीखने, एकाग्रता, स्मरण शक्ति आदि से होता है, साथ ही तनाव, अवसाद, निराशा आदि पर नियंत्रण से जुड़ा होता है I मानसिक उत्तेजनाओं और तनावों के इस युग में साइकोसोमेटिक रोगों की कल्पनातीत वृद्धि को देखते हुए ध्यान की तनावों (एक अध्ययन के अनुसार 80% मनोशारीरिक रोगों का मूल कारण तनाव है) के शमन में महती भूमिका वैश्विक क्षितिज पर स्वीकारी गई है I https://rightasrain.uwmedicine.org/mind/well-being/science-behind-meditation
प्रार्थना से उपचार
“मैन द अननोन” नामक अपनी पुस्तक में नोबेल प्राइज विजेता फ्रांसीसी सर्जन डॉ. एलेक्सिस कैरेल ने स्पष्ट लिखा है कि “रोगियों को जब हमने असाध्य घोषित कर दिया तब प्रार्थना ने चमत्कार कर दिया I इसलिए उपचार के साथ-साथ सच्चे मन से प्रार्थना भी कीजिए, डॉ. एलेक्सिस कैरेल ने कई आविष्कार किए और पुस्तकों का लेखन किया I “प्रेयर” भी उनके द्वारा रचित पुस्तक है I अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ रिसर्च का दावा है कि प्रार्थना करने वाले बच्चों, वयस्कों और बूढ़ों में अवसाद, निराशा और आत्महत्या की वृत्ति नहीं पनपती है तथा उन्हें हार्ट अटैक एवं उच्च रक्तचाप की बीमारी भी कम होती है l हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रो. ग्रे जेकब एवं पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के यूजीत डी. अकीली ने अपने शोध के निष्कर्ष में बताया कि प्रार्थना से तनावकारी हारमोंस कम हो जाते हैं तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है और रोगग्रस्त व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्त होने लगते हैं l
आस्था और अध्यात्म चिकित्सा
हाल में सम्पन्न सर्वेक्षणों के अनुसार, 59% ब्रिटिश मेडिकल स्कूलों और 90% अमेरिकी मेडिकल स्कूलों में आध्यात्मिकता और स्वास्थ्य पर केन्द्रित पाठ्यसामग्री है। हालांकि उनमें एकरूपता नहीं है I Religious/spiritual beliefs and practices are commonly used by both medical and psychiatric patients to cope with illness and other stressful life changes. A large volume of research shows that people who are more R/S have better mental health and adapt more quickly to health problems compared to those who are less R/S. These possible benefits to mental health and well-being have physiological consequences that impact physical health, affect the risk of disease, and influence response to treatment. https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/22900476/
वास्तव में यह देखा गया है कि ईश्वर पर अटूट विश्वास से सामान्य व्यक्ति और रोगियों के मस्तिष्क में संरचनात्मक और क्रियात्मक सकारात्मक परिवर्तन सम्भव हैं I मार्कस इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव हेल्थ के डायरेक्टर और जेफरसन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के फिजिशियन डॉ.एंड्रयू न्यूबर्ग, (Dr Andrew Newberg) एम.डी., और मार्क राबर्ट वाल्डमैन ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है, “हाउ गॉड चेंजेज योर ब्रेन”, उन्होंने लिखा है कि भगवान में विश्वास करने वाले व्यक्तियों के मस्तिष्क के सीटी स्कैन के आधार पर पता चला है कि आस्था से मष्तिष्क में रचनात्मक परिवर्तन होते हैं और व्यक्ति स्वस्थ होने लगता है I न्यूरोसाइंटिस्ट फ्रेड एग्बेअरे ने भी अपने क्लीनिकल अनुभवों के पुख्ता आधार पर एक पुस्तक “बेनिफिट्स इन गॉड” लिख डाली है I इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि यदि हम ईश्वर पर पूरी आस्था रखें तो बीमारियों को परास्त करने में सहायता मिल सकती है I
अवचेतन मन की शक्ति से उपचार
इमाइल कूए (Émile Coué) एक फ्रेंच मनोवैज्ञानिक थे, (1857 – 1926), उनके पास अनेक देशों के रोगी उपचार के लिए आते थे, उन्हें स्वस्थ करने के लिए वे रोगियों के अवचेतन मन के भीतर विराजमान जन्मजात शक्ति का उपयोग करना सीखाते थे, उनका कथन था कि Autosuggestion is an instrument that we possess at birth, and in this instrument, or rather in this force, resides a marvellous and incalculable power. वे हर रोगी से कहते थे कि “रात को सोने से पहले यह वाक्य दोहराते रहो कि मैं बीमार नहीं हूँ, मैं पूरी तरह स्वस्थ होता जा रहा हूँ I मैं कल की अपेक्षा बेहतर हूँ, बेहतर होता जा रहा हूँ I इन वाक्यों को सुबह भी दोहराएं और सम्भव हो तो दिन में भी अन्दर ही अन्दर इसे दोहराते रहें I” यह आत्मसम्मोहन का एक रूप है, जिसमें व्यक्ति अपने स्वयं के विचारों, भावनाओं को रोगमुक्ति के लिए उपयोग करता है ।
स्पर्श चिकित्सा
यदि पूर्ण सहानुभूति और करुणा के साथ किसी रोगी को पावन भावना से स्पर्श किया जाए तो वह स्पर्श उपचारक शक्ति से परिपूर्ण हो जाता है I स्पर्श चिकित्सा वैदिक मूल की है, ऋग्वेद की एक ऋचा का अर्थ है, मेरा यह हाथ भाग्यवान है l मेरा यह हाथ अधिक भाग्यशाली है l मेरा यह हाथ सब औषधियों से युक्त है और मेरा यह हाथ कल्याणकारी यानी शुभ – स्पर्श देनेवाला है l अयं मे हस्तो भगवा नयं मे भगवत्तर: l अयं मे विश्वभेषजो अयं शिवाभिमर्शन: ll
नासा की वैज्ञानिक बारबरा एन ब्रेनन ने स्पर्श की उपचारक शक्ति पर केन्द्रित “हैंड्स ऑफ़ लाइट” नामक पुस्तक की रचना की है, अनेक वैज्ञानिकों ने स्पर्श चिकित्सा पर शोध कर इसके सकारात्मक प्रभावों के विषय में लिखा है I प्राणिक चिकित्सा के विश्व विख्यात चिकित्सक स्टेफन को ने अपनी पुस्तक “योर हैंड्स कैन हील यू” में लिखा है कि अविश्वसनीय रूप से, आपके हाथ आपको स्वस्थ कर सकते हैं -प्राणिक हीलिंग की “उपचारक ऊर्जा” के साथ। प्राणिक हीलिंग आपकी अपनी प्राकृतिक, महत्वपूर्ण ऊर्जा के साथ काम करती है – जो आपके शरीर की स्वाभाविक आत्म-उपचार क्षमता को गतिमान करने में सक्षम होती है I ऋग्वेदवर्णित स्पर्श चिकित्सा का उपयोग भगवान् गौतम बुद्ध ने भी किया है और उनके द्वारा रचित पुस्तक “कमल सूत्र” में इसका वर्णन भी है I
अभ्यंग (मालिश) चिकित्सा
एक अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ है कि अभ्यंग (मालिश) से सिरोटोनिन और डोपामिन का स्तर बढ़ जाता है और तनावकारी कार्टिसोल का स्तर कम हो जाता है I Int J Neurosci. 2005 Oct;115(10):1397-413. डोपामिन प्रसन्नता और प्रेरणा (मोटिवेशन) को नियन्त्रित करता है l सिरोटोनिन दर्दकारी पदार्थ यानी “पी. पदार्थ” को कम करता है और नीन्द तथा मूड को नियन्त्रित करता है l रक्त में कार्टिसोल के स्तर को कम करता है, जिससे रोगाणुओं के नेचरल किलर सेल्स की संख्या बढ़ जाती है l रोग प्रतिरोधक तन्त्र सशक्त होता है l मालिश से मन में खुशी उत्पन्न करने वाले एंडोर्फिन्स तथा आनन्द की अनुभूति देने वाले रसायन का स्त्रवण बढाता है l https://medium.com/thrive-global/how-massage-affects-your-mood-334663052773 मालिश से रक्त और लसिका का प्रवाह बढ़ता है l मालिश शरीर में सुधार (वियर एण्ड टियर) को गति प्रदान करती है l सूजन कम होती है l भीतरी उत्तकों की फैलने और लचीलेपन की क्षमता में वृद्धि होती है l दर्द में लाभ होता है l जोड़ों की गति सीमा में वृद्धि होती है l मांसपेशियों की कार्यक्षमता बढ़ती है l फेफड़ों के स्त्राव हटाने में सहायक l मालिश वाली जगह और पूरे शरीर में हल्कापन आता है और आक्रामकता और शत्रुता कम होती है I तनाव और चिन्ता घटती है I एकाग्रता और संज्ञानत्मक क्षमता बढ़ती है, निद्रा में सुधार I रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है l
अग्निहोत्र चिकित्सा
भारत में सम्पन्न एक अनुसंधान के अनुसार अग्निहोत्र करने से वातावरण में मित्र जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि और शत्रु जीवाणुओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी हो जाती है I प्रोफेसर जे.रोजरसन के नेतृत्व में सुश्री डी.टाकावले ने अग्निहोत्र के पूर्व, दौरान एवं पश्चात एनर्जी फिल्ड इमेजिंग के द्वारा किए गए अध्ययन में पाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता है और व्यक्ति की क्षमता में वृद्धि होती है । https://www.scribd.com/document/323977336/12-Chapter-6 अग्निहोत्र पर हुए एक अन्य शोध के अनुसार मस्तिष्क में नई कोशिकाओं का निर्माण, विकिरण के दुष्प्रभावों का निरस्तीकरण, ह्रदय और फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि के साथ साथ वनस्पति जगत पर भी काफी सकारात्मक प्रभाव हुए । आयरलैण्ड से प्रकाशित साइंस डाइजेस्ट नामक इथनो फार्माकोलॉजी की जर्नल में “मेडिसनल स्मोक रिड्यूजेज एअरबोर्न बैक्टीरिया” शीर्षक से प्रकाशित लेख में बताया गया कि भारतीय हर्बल सामग्री से नित्य अग्निहोत्र करने से रोगाणु पूरीतरह नष्ट हो जाते हैं I https://www.academia.edu/6180056/Medicinal_smoke_reduces_airborne_bacteria

सूर्य किरण चिकित्सा
जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी में लन्दन के किंग्स एम.आर.सी. एंड अस्थमा यू के.सेंटर की प्रमुख शोधकर्ता डॉ.कैथरीन हारीलोविज के अनुसार सूर्य किरणों से स्नान करने के कारण उन दमा रोगियों को भी बहुत लाभ पंहुचा है, जो कार्टिसोन लेने के बाद भी दमे के दौरे से हैरान परेशान थे l न्यूयार्क के डेलियन डाउनिंग के अनुसार सुबह की सूर्य किरणों से मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं बढ़ जाती हैं और रोगप्रतिरोधक तन्त्र में गुणात्मक सुधार भी होता है I सूर्य किरणें एक सशक्त एंटीबायोटिक की तरह भी काम करती हैं I मधुमेह, सोरायसिस, मानसिक अवसाद, मुंहासों में उपचार का काम करती है I न्यूयार्क के राजकीय मनोविज्ञान संस्थान में सूर्यकिरणों के उपचार के बाद अवसाद के रोगियों ने तीसरे ही दिन काफी राहत महसूस की I जर्मनी के डॉ. लुइकुने के अनुसार सूर्यकिरणों में रोगों को नष्ट करने की तथा प्राणीमात्र को स्वास्थ्य और नवजीवन प्रदान करने की प्राकृतिक शक्ति है, सूर्यकिरण चिकित्सा से मोटापा, मुंहासे, ओस्टियोपोरोसिस, मानसिक अवसाद, जिद्दी अस्थमा, सोरायसिस, मधुमेह, रोग प्रतिरोधक शक्तिवर्द्धक, सीजनल अफेक्टीव डिसऑर्डर, (20% अमेरिकी) आदि रोगों में लाभ होता है I