गीतिका
कभी जिन्दगी शोला है और कभी जिन्दगी है शबनम
कभी जिन्दगी में खुशिया़ं है़ंं और कभी जीवन में गम
कभी धूप हैं कभी छांव है फूल भी हैं और कांटे भी
कभी जिन्दगी में उजियारा और कभी है गहरा तम
कहीं बाग में पंछी चहके और कहीं पिजंरे में हैं
कहीं पे सूखी धरती व्याकुल और कहीं बारिश रिमझिम
कहीं पे धन की वर्षा होती नहीं कहीं निर्धन पर धन
कहीं प्रेम और अपनापन है और बरसते कहीं पे बम
कहीं पे लूट खसोट मची,कोई कहीं लुटाता अपना सब
कोई ऐश महलो में लेता रोड़़ पे निकले किसी का दम
सबका जीवन अलग यहां पर, सबके सुख और दर्द अलग
सभी भाग्य में जितना है उतना पाते न ज्यादा ,कम
— शालिनी शर्मा