ससुराल मायका क्यूँ नहीं बन सकता
“मत बनों कारण किसी मासूम की बर्बादी का, मुस्कान भरो बहू के चेहरे पर ममता का उपहार देकर और ज़रिया बनों किसीके जिगर के टुकड़े की ज़ीस्त संवारने का”
लड़की का वजूद क्या है? बेटी हंमेशा पराई ही क्यूँ रहती है? मायके में शादी से पहले ससुराल की अमानत मानी जाती है तो सब कहते है, बेटी तो पराया धन होती है। पर ससुराल की अमानत ससुराल वालों की अपनी कहाँ होती है। बहू तो दूसरे घर से आई मानों ख़ुफ़िया जासूस होती है। सारे काम उनसे छुप-छुप कर होते है, वहाँ भी पराई ही मानी जाती है। कोई पैसो की या बिज़नेस की बात हो तो बहू से छुपकर कि जाती है, बेटी को कुछ देना हो तो सासु माँ बहू से छुपकर देती है, कोई व्यवहारिक चर्चा हो तो बहू से छुपकर की जाती है। बहू को लगातार ये एहसास दिलाया जाता है कि वो पराये घर से आई है वो इस घर का हिस्सा कभी नहीं बन सकती। बहू सबको अपना बनाने के लिए अपनी ज़ात घिस ड़ालती है फिर भी ससुराल, जो उसका अपना ही घर है वहाँ खुद को प्रस्थापित नहीं कर पाती।
आख़िर क्यूँ बहू को बेटी का स्थान नहीं दे सकते, क्यूँ घर का सदस्य नहीं मान सकते जबकि अब उसे इसी घर का हिस्सा बनकर रहना है। पुत्रवधु कितना प्यारा शब्द है आपके बेटे की अर्धांगनी और बेटे को जीवन भर साथ देने वाली बेटे की खुशियाँ होती है बेटे की खुशी से कैसा बैर? और आपके खानदान की इज्ज़त, आपके वंश को आगे ले जाने वाली धुरी, आपके बुढ़ापे का सहारा, परिवार की नींव न जानें क्या-क्या होती है बहू। सुंदर पैरों में पायल पहने घर में रूनझुन सा संगीत लहराते घूमती गुड़िया सी बहू हमें पराई क्यूँ लगती है।
किसीके जिगर के टुकड़े को हम उसकी जड़ से उखाड़ कर ले आते है। मायके में राजकुमारी सी पली बहू में हम अपनी बेटी की छवि क्यूँ नहीं देख सकते? क्यूँ ये मान लेते है कि दूसरे घर से आई लड़की हमारे खानदान की परंपरा नहीं समझ पाएगी। प्यार अपनापन और सम्मान देने पर कुत्ते भी वफ़ादारी दिखाते है बहू पर भरोसा करके तो देखिए, हल्का सा अपनापन जताकर तो देखिए। सम्मान की अधिकारी को प्रताड़ित क्यूँ करते हो अपने घर में ज़रा सी जगह तो दीजिए, अपने मन का हिस्सा बनाकर तो देखिए। अपने पिता के घर मन मर्ज़ियां करने वाली लाड़ली को उतना ही लाड़ क्यूँ नहीं दे सकते। अपनी बेटी की तरह बहू की गलती भी नज़र अंदाज़ क्यूँ नहीं कर सकते, क्यूँ मायके को लेकर हंमेशा चार बातें सुनाई जाती है, या दहेज के लिए दमन किया जाता है। क्यूँ सारे घर की ज़िम्मेदारी अकेली बहू के कँधे पर ड़ालकर आराम फ़रमाते है, बहू की जगह अपनी बेटी को रखकर देखिए कलेजा काँप उठेगा।
अगर बहू नौकरी पेशा है और थकी हारी ऑफ़िस से आती है तो एक कप चाय अपने हाथों से बनाकर क्यूँ नहीं पीला सकते, और दो कामों में हाथ बंटाकर बहू का बोझ कम क्यूँ नहीं कर सकते?
कई घरों में बहू की ही उम्र की बेटी होती है, जो भाभी के आते ही खुद को सुपर पावर समझ लेती है और माँ बेटी मिलकर बहू के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचती रहती है। अरे अपनी बेटी को ये समझाईये कि भाभी के साथ मिल झुलकर रहे, जब आप दुनिया में नहीं रहोगे तब अगर बेटी का अपनी भाभी से रिश्ता अच्छा होगा तो मायके के दरवाज़े खुल्ले रहेंगे। और याद रखिए जैसा दोगे वैसा पाओगे बहू बुढ़ापे की लाठी है, बेटा तो कामकाज से बाहर रहता है। बहू को प्यार दिया होगा तो बुढ़ापे में प्यार से सेवा करेगी बाकी अत्याचार के बदले इज़्जत की आशा रखना गलत है।
कोई ऐसा कहेंगे कि अब ज़माना बदल गया, अब ऐसा कुछ नहीं रहा सब बहू को बेटी की तरह रखते है वगैरह। चलो मान लिया सारे घरों में बहू राजरानी सी रहती है, तो फिर आए दिन जो बेटियाँ खुदकुशी करती है, या ससुराल वालों की प्रताड़ना से परेशान कोर्ट-कचहरी में पड़ी ढ़ेरों शिकायतें यूँहीं डाली गई है? नहीं साहब बहुत मुश्किल है बहू को बेटी मानकर अपने घर का हिस्सा बनाना, बहुत बड़ा दिल चाहिए। बहुत कम घरों में बहू को उसका सही स्थान मिलता है, कुछ घरों में आज भी वही अट्ठारहवीं सदी वाली परंपरा चली आ रही है बहू मतलब बहू बेटी की जगह कभी नहीं ले सकती। इस समाज की मानसिकता बहुत छोटी है बहूओं के लिए बदलने को विराट होने के लिए तैयार ही नहीं।
एक बार खुलकर स्वागत कीजिए बहू के अस्तित्व का, मायके सी आज़ादी देकर अपनी पसंद का पहनना, उठना-बैठना खाना-पीना करने दीजिए बहू को अपनी पसंद का सब। सिर्फ़ स्थान बदल करने दीजिए कल मायके में थी आज ससुराल को मायका बनाकर उपहार दीजिए। घर का वातावरण फिर देखिए पगली जान भर देगी घर में, किसीकी बच्ची को क्यूँ सताना है, क्यूँ हाय लेनी है? मन कचोटता नहीं किसी मासूम पर अत्याचार करते। और याद रखिए आप सिर्फ़ बहू को ही प्रताड़ित नहीं करते, जिन माँ-बाप की बेटी ससुराल में दु:खी होती है उन माँ-बाप की भी रातों नींद और दिन का चैन लूट लेते हो। कौन माँ-बाप सुख से रहें पाएंगे जिनकी बेटी के जीवन में सुकून न हो। मानसिकता बदलो और घर का माहौल ठीक रखना है तो बहू को बेटी सा प्यार दो, दिल से अपनाओ और एक बच्ची का जीवन संवार कर खुद भी आत्म संतुष्टि का अनुभव करो।
— भावना ठाकर ‘भावु’