साहचर्य
अभी-अभी एक समाचार पढ़ा-
“मोरनी के अंडे चुराने पहुंची थी महिला, लेकिन बहादुर मोर ने उसे जमीन पर पटक दिया”
मोर सिर्फ खूबसूरत ही नहीं बल्कि बहुत बहादुर भी होता है और उसे भी अपने परिवार की चिंता होती है. बात जब बच्चों के घात पर पहुंचे, तो मोर का महिला को दो-तीन पटखनियां देना तो बनता ही है. मोर ने ऐसा ही किया. महिला बची या नहीं, मोर-मोरनी के अंडे जरूर बच गए.
इस समाचार को देखकर मुझे तीन महीने पहले की अद्भुत और सुखद बात याद आ गई.
हमारे घर की खिड़की के चौबारे में मादा कबूतर ने अंडे दिए थे. वह तो अंडे से रही थी, नर कबूतर दाना चुगने जाता और सहधर्मिणी के लिए भी ले आता. दो और कबूतर दम्पत्ति थोड़ी-थोड़ी देर में आते और उसको दाना भी खिलाते और हाल-चाल भी पूछ जाते. कई बार छः-छः कबूतर एक साथ दिख जाते. साहचर्य का यह मंजर मनभावन था.
खिड़की के चौबारे से पड़ोस के चौबारे पर चलते हैं. पड़ोस में एक महिला की डिलीवरी होनी थी. उस समय वह घर पर अकेली थी. उसने पड़ोस की एक आंटी को फोन करके मदद के लिए जल्दी आने को कहा. आंटी तो जाने को तैयार थी, पर किसी ने टोक दिया- “उसके पहले ही दो बेटियां हैं, आपके जाने से तीसरी भी बेटी हो गई, तो आपका ही नाम खराब होगा.” आंटी नहीं गई. महिला का पति काम पर दूर था, उसने अपने साले को अस्पताल ले जाने को कहा. जब तक महिला का भाई मदद को आता, उसे बेटा हुआ था और महिला चल बसी थी.
वह भी साहचर्य था, यह भी साहचर्य!
कितना गज़ब कर जाती है
ये जुबाँ जब हरकत में आती है।
रिश्तों का खून कर जाती है
प्रेम चकनाचूर कर जाती है।
लहराती है जब बेकाबू होकर
छोटे बड़े का भेद भुलाती है।
अपना पराया सब व्यर्थ होता
कड़वाहट रिश्तों में छोड़ जाती है।
छोटी सी ये जुबाँ ब्रम्हास्त्र है
इसकी चोट न कभी भर पाती है।