गीत/नवगीत

खून सने हाथों को

खून सने हाथों को, जीवन देना होगा ठीक नहीं
भारत माँ के गद्दारों की, साँसें चलना ठीक नहीं
जिसकी बंदूकों की गोली ने, हम पर गोली दागी थी
जिसके अत्याचारों से, केसर की वादी काँपी थी
जो काली करतूतों को गाँधीवादी बतलाता हो
अपने आतंकी हमले को धर्मयुद्ध समझाता हो
इस खूंखार दरिन्दे को, क्या नमक खिलायेगा भारत?
उससे सीने पर क्या अपने, मूँग दलायेगा भारत?
आतंकी को उम्र कैद! किसी सम्मान-सी लगती है
भस्मासुर को दिये हुए , किसी वरदान-सी लगती है
न्यायदेवी कब तक ना अपनी नैन-पट्टिका खोलेगी?
कब तक धाराओं की वाणी, अन्याय की भाषा बोलेगी?
ऐसे आततायी को तो, फाँसी की सजा भी छोटी है
काट-काट कुत्तों को दो, जितनी शरीर में बोटी है।
देशद्रोहियों के लिए,  संविधान पुनः पढ़ना होगा
भारत का भाग्य बदलने को, विधान नया गढ़ना होगा।
— शरद सुनेरी