छिपकली
सुनो! छिपकली घर में आती।
कीड़े को झट से खा जाती।।
दोस्तों को सँग में है लाती।
अपने पीछे उसे घुमाती।।
दीवारों में चिपकी रहती।
कुटुर कुटुर वो छुप कर कहती।।
छोटी छोटी आँखें होती।
पता नहीं वो कब है सोती।।
कभी नहीं वो पीती पानी।
करती है अपनी मनमानी।।
अपने सँग बच्चों को लाती।
घर को भी गन्दा कर जाती।
छुप छुप कर अंडे है देती।
सुबह शाम फिर उसको सेती।।
उसके बच्चे धूम मचाते।
दरवाजों में वो दब जाते।।
देख उसे बच्चे डर जाते।
मम्मी को आवाज लगाते।।
मम्मी अपनी छड़ी उठाती।
सी.. सी.. कर के उसे भगाती।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”