भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी
वैश्विक स्तरपर भारत की राजकीय भाषा हिंदी का प्रचार, प्रसार, महत्व, प्रतिष्ठा इतनी तेजी से बढ़ी है जिसका अंदाजा शायद हमने नहीं लगाया था। आज हम हाल के कुछ वर्षों की बात करें तो जहां हमारे माननीय पीएम महोदय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में संबोधनों, वन टू वन हिंदी डायलॉग, उन देशों के मूल भारतीयों से मुलाकात और हिंदी में बातचीत सहित ऐसी कई शासकीय प्रशासकीय स्तर पर उत्साहित प्रक्रिया शुरू है जिसके कारण राजभाषा हिंदी में ऊर्जा का संचार व विशिष्ट मान्यता मिलने से हिंदी की प्रतिष्ठा का अतिविस्तार हुआ है।
बात अगर हम हिंदी की करें तो रविंद्र नाथ टैगोर ने भी कहा था भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी हम जानते हैं हिंदी, बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। संविधान के अनुच्छेद 343 के अंतर्गत संघ की राजभाषा के संबंध में प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 343 के खंड (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी संघ की राजभाषा है। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
हिंदी के प्रचार प्रसार, योगदान में हर क्षेत्र का सहयोग प्राप्त है। हिंदी को वैश्विक संदर्भ देने मे उपग्रह चैनलों, विज्ञापन एजेंसियों, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा यांत्रिक सुविधाओं का विशेष योगदान है। वह जनसंचार माध्यमों की सबसे प्रिय एवं अनुकूल भाषा बनकर निखरी है। आज विश्व में सबसे ज्यादा पढे जानेवाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिन्दी के हैं।
बात अगर हम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पीएम के हिंदी संबोधनों की करें तो, भारतीय विचार और संस्कृति का वाहक होने का श्रेय हिन्दी को ही जाता है। आज संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में भी हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है। हमारे पीएम द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ही अभिभाषण दिया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए कार्यरत है। उम्मीद है कि हिंदी को शीघ्रकही संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त हो सकेगा।
बात अगर राम माननीय गृह राज्य मंत्री द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने कहा, कि आज देश के लगभग सभी प्रांतों में हिंदी भाषा की पढ़ाई हो रही है जिससे हिंदी के प्रति लोगों का रूझान बढ़ रहा है। किसी भी राष्ट्र के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी भाषाओं के प्रति सजग रहे और उन्हे आगे बढ़ाने के लिए आवश्यकतानुसार कदम उठाए। इस दिशा में देश का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से सजग है और हमारे पीएम जी ने सदैव ही सभी भारतीय भाषाओं के सम्मान को आगे बढ़ाने का काम किया है। पीएम विश्व में जहां भी गए, उन्होंने हिंदी भाषा में संबोधन दिया। इससे वर्तमान पीढ़ी को नई ऊर्जा प्राप्त हुई है और लोग दैनिक व्यवहार में हिंदी भाषा का उपयोग करने में हिचक महसूस नहीं करते। उन्होने कहा कि हमारे गृह मंत्री भी सर्वभाषा प्रेमी हैं और विभिन्न अवसरों पर हिंदी में ही बात करते हैं, इससे लोगों का उत्साह भी बढ़ता है। एक अन्य बुद्धिजीवी ने कहा, गृह मंत्री जी के नेतृत्व में आज गृह मंत्रालय का अधिकतर कार्य हिंदी भाषा में हो रहा है। उन्होने कहा कि स्वतंत्रता के बाद अधिकतर मूल कार्य हिंदी में किए जाने का आशय था परंतु अभी तक यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सके, अब समय आ गया है कि मूल कार्य हिंदी में हो और अंग्रेजी में उसका अनुवाद हो। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का जिक्र करते हुये उन्होंने कहा कि आजादी से पहले ही कई संस्थाएं हिंदी के संवर्धन की दिशा में काम कर रही हैं। पं दीन दयाल जी ने कहा था कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पुनर्स्थापना और इतिहास के पुनर्लेखन का काम भाषा के उत्थान के बिना संभव नहीं है। गृह राज्य मंत्री ने कहा कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में संबोधन दिया और सुषमा स्वराज जी के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र के हिन्दी में ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया चैनल शुरु किये गये। बात अगर हम हिंदी को एकता का सूत्र मानने की करें तो, हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है। सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन होने के नाते हिंदी विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिंदी जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं। यह खुशी की बात है कि सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी का इस्तेमाल बढ़ रहा है। आज वैश्वीकरण के दौर में, हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है। आज पूरी दुनिया में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही है। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है।
बात अगर हम हिंदी के विकास में सबकी भागीदारी की करें तो, भाषा का विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है। आज के तकनीकी के युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इसके लिए यह अनिवार्य है कि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का सरल अनुवाद किया जाए। इसके लिए राजभाषा विभाग ने सरल हिंदी शब्दावली भी तैयार की है। राजभाषा विभाग द्वारा राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन योजना के द्वारा हिंदी में ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों के लेखन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे हमारे विद्यार्थियों को ज्ञान-विज्ञान संबंधी पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध होंगी। हिन्दी भाषा के माध्यम से शिक्षित युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें, इस दिशा में निरंतर प्रयास भी जरूरी है।
परंतु कुछ हद तक समस्या यह आ रही है कि, देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ अंग्रेजी पूरे देश पर हावी होती जा रही है। हिन्दी देश की राजभाषा होने के बावजूद आज हर जगह अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। हिन्दी जानते हुए भी लोग हिन्दी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकने लगे हैं। इसलिए सरकार का प्रयास है कि हिन्दी के प्रचलन के लिए उचित माहौल तैयार की जा सके।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरा विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पीएम का हिंदी में संबोधनों से राजभाषा में ऊर्जा का संचार विशिष्ट मान्यता व हिंदी की प्रतिष्ठा का अति विस्तार हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ सहित सभी वैश्विक मंचों पर हिंदी का वैश्विक मानदंडों पर खरा उतरना सराहनीय है।
— किशन सनमुखदास भावनानी