मुझे भी दर्द होता है
सच कहूं मुझे भी दर्द होता है
मर्द हूं तो क्या हुआ मेरा भी दिल रोता है।।
सच कहूं मुझे भी दर्द होता है।।
दिन भर खपता अपनों के लिए
अपनों कि एक मुस्कान ही देख खुश होता हूं ।।
अपनों से ही पाता जब कटु शब्द
मेरी जुबान खामोश पर दिल चीख-चीख रोता है।
सच कहूं मुझे भी दर्द होता है।।
मेरा बच्चा दिन भर मां कह लिपट उससे सोता है
ये भी देख में खुश होता हूं।।
मेरी समझाईश को वो विपरीत समझ रोता है
धीरे-धीरे वो मुझसे ही दूर होता है ।।
सच कहूं मुझे भी दर्द होता है।।
थका हारा दिन भर काम कर जब घर आता मैं
फुर्सत नहीं किसी को मेरे लिए
कोई टीवी देखे , कोई फोन पर बतियाता होता है
जब खुद पानी लेकर पी यादों में खोता हूं।।
तब सच कहूं मुझे भी दर्द होता है।।
रिटायर होने के बाद तो जैसे एक कोन में सोता हूं
वो इज्जत पहले सी कहां जो कमाते समय पाई
उस बीते पल के हर लम्हें को याद कर , चुपचाप
जो मिले वो खा सोच चुप अखबार में खोता हूं ।।
सच कहूं मुझे भी दर्द होता है।।
बच्चे बड़े हुए , शादी कर सब जिम्मेदारी निभाई मैंने
मेरे लिये अपनों के पास वक्त अभाव देख उदास होता हूं
पर सच कभी-कभी खुद के ही दिल को मैं समझाता ,
बच्चों को जिम्मेदारी निभाते देख भी खुश होता हूं ।।
सच कहूं मुझे भी दर्द होता है।।
मर्द के दिल में झॉंक उसकी अर्द्धांगिनी ही देखी
यही अंत समय तक निभाती पवित्र रिश्ता संग
उम्र के एक पड़ाव में आकर आभास हमें क्यों होता है
चलो दिन भर सोचता रहा चाय कि चुस्की संग मैं ।
अर्धांगिनी कि निष्ठा को गले लगाने को दिल होता है।।
पर सच कहूं कभी-कभी मुझे भी दर्द होता है।।
— वीना आडवाणी तन्वी