सफ़र हमारे : स्वप्न और यथार्थ से रूबरू कराते रोमांचक यात्रा वृत्तांत
“सूखा ताल नीचे गहरी खाई में था। उसके साथ-साथ ही पहाड़ की यह खड़ी दीवार थी, जिसके किनारे पर खड़े होने की हिम्मत नहीं की जा सकती थी। पहाड़ के टूटने की आवाजें दहशत भर देने वाली थीं। कच्चे पहाड़ में अटके हुए पत्थरों पर टिकी निगाहें..पत्थर अब गिरा कि तब। जहां चल रहे थे, पूरा पहाड़ कच्चा था। कच्चे पहाड़ पर चलते हुए डर लगता। एक पत्थर सरका नहीं कि ढेरों पत्थरों के सरकते जाने का खेल रास्ते भर देखते ही आए थे। बड़ी-बड़ी शिलाएं भी हल्के से इशारे पर सरक जातीं। जिस धार पर चढ़े थे उसके अंतिम छोर पर लंबा मैदान दिखाई दिया। सफेद-भूरी बर्फ की चादर बिछी हुई थी। ग्लेशियर का कच्चापन भी जगह-जगह झांक ही रहा था। जिसने सचेत रहने की हिदायत दे दी – पोली बर्फ कब आगे बढ़ने से रोक दे और न जाने पाताल के किस कोने में सशरीर पहुंच जाएं। पहाड़ का वही कच्चापन। एकदम तीखी चढ़ाई। पत्थरों के लुढ़कने का खतरा यहां पहले से भी ज्यादा दहशत भरा।”
रोमांचित कर देने वाला यह अंश है काव्यांश प्रकाशन, ऋषीकेश से हालिया प्रकाशित यात्रा वृत्तांत संग्रह “सफ़र हमारे” में शामिल विजय गौड़ की किन्नौर घाटी सम्बंधी यात्रावृत्त ‘अपने वतन का नाम बताओ’ से। ऐसे ही 25 यात्रा वृत्तांत प्रस्तुत संग्रह में सहेजे गए हैं जिन्हें पढ़ते हुए पाठक पीठ पर पिट्ठू लादे और एक हाथ में पानी की बोतल तो दूसरे हाथ छड़ी पकड़े कभी बर्फ में आहिस्ता-आहिस्ता पांव जमाता है तो कभी किसी घने पेड़ के नीचे किसी चट्टान पर बैठ सुस्ताते हुए थर्मस से गर्मागरम चाय की चुस्कियां ले बची-खुची ऊर्जा को समेट अगले पड़ाव की ओर लेखक के साथ-साथ कोई पहाड़ी गीत गाते बढ़ जाता है। अत्यधिक ऊंचाई पर आक्सीजन की कमी को अपने कमरे में बैठा पाठक भी अनुभव कर एकायक फेफड़ों में खींचकर हवा भरता है। तो कभी माथे पर छलछला आई पसीने की बूंदें पोंछता है। यह अनुभूति यात्रा वृत्तांतों की जीवंतता का प्रतीक है। पुस्तक की सफलता प्रमाण है।
यात्रा वृतांत एवं डायरी के संचयन का परिणाम है “सफर हमारे” संकलन। काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश से प्रबोध उनियाल के संपादन में प्रकाशित “हमारे सफर” यात्रा साहित्य पाठकों एवं घुमक्कड़ी के शौकीनों के बीच पढ़ी एवं सराही जा रही है। पुस्तक में संग्रहीत यात्रा वृत्तांत एक लंबे कालखंड की नुमाइंदगी करते हुए पाठकों के सम्मुख तत्कालीन परिदृश्य का जीवंत दृश्य उपस्थित करते हैं। इसमें एक तरफ वर्ष 1985 में की गयी पिंडारी ग्लेशियर की खतरनाक यात्रा में लेखक प्रमोद साह के मौत के मुंह से बचने की दास्तान है तो 1994 में अनूप साह की दुर्गम ‘ट्रेल्स पास’ की यात्रा का रोंगटे खड़े कर देने वाला विवरण भी है। गीता गैरोला के लेख ‘कई सफ़र अभी बाकी हैं में अनसूया के मेले की आनन्द वर्षा भी है। दूसरी तरफ वर्ष 2017 में ‘हिमाचल की राह से’ यात्री वाचस्पति की लेखनी से निकला शब्दों का जादू अनुभव करिए या फिर उमेश पंत की ‘केदारकांठा की यात्रा में 12600 फीट की ऊंचाई पर बिताए और कैमरे में कैद समय के चित्र या फिर 17500 फीट ऊंचे लांगमाला दर्रे के पार सिकल ग्लेसियर से ‘आसमान तक पहुंचे शिखर’ में तिब्बत और नेपाल की पहाड़ी संस्कृति की झलक यात्री शेखर पाठक की जुबानी। पर्वतों की चढ़ाई से मन उकताए-ऊबे तो अपनी ओर बुलाते हैं यूरोपीय देश जिसमें आप जितेन्द्र शर्मा के साथ ‘विलियम वर्ड्सवर्थ के गांव में’ जा सकते हैं या फिर शालिनी जोशी के साथ ‘एक दिन एम्स्टर्डम’ में घूम-टहल विशाल नहर-जाल का दर्शन कर खुशी सहेज सकते हैं। या फिर चंद्रनाथ मिश्र के साथ निकल जाइए ‘मेरी यूरोप यात्रा’ में ब्रिटेन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, इटली और आस्ट्रिया की सड़कों पर। कुल मिलाकर एक से बढ़कर एक रुचिपूर्ण यात्रा वृत्तांत। तो साथियो इन यात्राओं के द्वारा देश-विदेश के भूगोल को तो नापा ही गया है साथ ही इतिहास के पन्ने भी खंगाले गए हैं। लेकिन ये यात्राएं इस इतिहास-भूगोल से इतर जन सामान्य के जीवन के स्पंदन को महसूस कराती हैं तो संस्कृति से संवाद करती स्वर्णिम अतीत के गवाक्ष भी खोलती हैं। यह यात्राएं साहस, रोमांच, निर्भयता एवं धैर्य की सीढ़ियों से होते हुए अपने मंजिलों तक पहुंचती हैं तो कदम-कदम में विद्यमान खतरों, बाधाओं, चुनौतियों एवं अवरोधों से जूझते कदमों और थरथराते दिलों की सामर्थ्य की परीक्षा भी हैं। बकौल संपादक, “यात्राएं आपकी दृष्टि में एक विशिष्ट सौंदर्य बोध विकसित करती हैं और आपको उन अनुभवों और अनुभूतियों में ले जाती हैं जहां आप प्रकृति, पर्यावरण और समाज का हिस्सा या भागीदार ही नहीं उनके सहचर की भूमिका में भी होते हैं। वे जितना बाहरी दुनिया को टटोलती हैं उतना ही आपके अंतर्मन को भी जागृत-झंकृत करती हैं। वहां ठहराव भी है और भटकाव भी। रोमांच भी और ऊब भी। थकान भी है और ऊर्जा भी। स्वप्न भी हैं और यथार्थ।”
247 पृष्ठों में बिखरी 25 रोमांचक एवं साहसिक यात्रा कथाएं पाठक के सामने देश-दुनिया का नवल क्षितिज प्रस्तुत करते हुए तमाम अनचीन्हे अनजाने नयनाभिराम स्थलों से रूबरू कराती हैं तो वही नए रास्ते तलाशती हैं। यात्राएं व्यक्ति को गढ़ती हैं, बदलती हैं। यात्राओं से तन-मन को न केवल सुख-शांति एवं ताजगी मिलती है बल्कि देश-दुनिया को देखने-समझने की एक नई डगर और नया नजरिया भी मिलता है। यात्राएं पुरा मान्यताओं एवं रूढ़ियों की गांठें खोलती हैं। वास्तव में यात्राएं व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में एक खिड़की खोलती हैं जिससे स्वच्छ और ताजी हवा जेहन में प्रवेश कर सके और यह हवा है विचार की, लोक चेतना की, अतीत के गौरव एवं समृद्धि से साक्षात्कार की तथा नवीन के प्रति आकर्षण एवं सम्मान की। इसलिए पारंपरिक लीक को तोड़ती हुई ये यात्राएं जोखिम उठाते हुए नई धाराओं को जन्म देती हैं जिनमें रहस्य, रोमांच और बाधाओं की उछलती लहरें यात्रियों को अवगाहन करने हेतु आमंत्रण एवं चुनौती देती रहती हैं। इन लहरों में ही समय सवार होकर लोक की यात्रा करता है। असगर वजाहत अपने लेख “टूरिज्म नहीं सोशल टूरिज्म” में कहते हैं, “मेरी आंखें सदा नये दृश्यों की तलाश में रहती हैं। नया दृश्य कुछ नया सोचने की प्रेरणा देता है। जो नया है वह रोचक है और उसे समझना एक चुनौती। नये देखें और समझे को लिखना या दूसरों को बताना एक और बड़ी चुनौती है।” अर्थात यात्रा नवीनता की खोज भी हैं।
प्रस्तुत संग्रह “सफर हमारे” में शामिल यात्रा वृतांत एवं डायरी लेखन की 25 कथाओं में 13 पर्वतीय क्षेत्रों देवभूमि उत्तराखंड एवं हिमाचल से सम्बंधित हैं जिनमें ग्लेसियर, चोटियों, दर्रों, बुग्याल (घास के मैदान) और पर्वतीय मेलों की यात्राओं के मनोहारी वर्णन से पाठक तृप्त होता है। चार-पांच वृत्तांत यूरोप की यात्राओं से जुड़े हैं। तो एक यात्रा विवरण पिरामिडों की धरती मिस्र से है। एक यात्रावृत्त दक्षिण भारत की सैर कराता है तो एक दूसरी यात्रा हिमाच्छादित अंटार्कटिक में स्थापित भारत के शोध केंद्र मैत्री की झांकी पाठकों के सामने रखता है जहां शरदकाल में 24 घंटे रात होती है। शेष यात्रा विवरण मिली-जुली यात्राओं और यात्रा सम्बंधी विचारों से पाठकों के मन को समृद्ध करते हैं। पुस्तक की छपाई आंखों को सुख देती है।कागज नेचुरल शेड उच्च गुणवत्ता का है और बाईंडिग परफेक्ट मजबूत। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। तो सोच क्या रहे हैं, किताब मंगाए और पढ़ना शुरू करिए।
कृति – सफ़र हमारे
संपादक – प्रबोध उनियाल
प्रकाशक – काव्यांश प्रकाशन, ऋषीकेश
पृष्ठ – 247, मूल्य – ₹225
— प्रमोद दीक्षित मलय