गीत – कौन हैं वे लोग
जबकि चारों ओर स्वर हिंदुत्व के मुखरित हुए हैं,
कौन हैं वे लोग जो इस अभ्युदय से डर रहे हैं?
हिंदुओं को हीनता के गर्त में डाला गया था।
सैकड़ों सालों नपुंसक की तरह पाला गया था।
तुम अहिंसक हो, तुम्हारी नियति ही है सहन करना,
भीरुता के एक ढाँचे में उन्हें ढाला गया था।
आज जब बदलाव के कुछ चिन्ह परिलक्षित हुए हैं,
कौन हैं वे लोग जो बदले समय से डर रहे हैं?
मुस्लिमों को देश दीगर चाहिए था, मिल गया था।
भारती के हो गए टुकड़े, कलेजा छिल गया था।
दूसरा हिस्सा हमारा, हिंदुओं का था अगर तो,
तथ्य को स्वीकारने में किसलिए मुँह सिल गया था?
इक नया हिंदुत्व करवट ले रहा है देश में जब,
कौन हैं वे लोग जो अब इस विषय से डर रहे हैं?
मुस्लिमों को इस वतन में हक़ भरे-पूरे दिलाए।
शासकों ने मौलवी-मुल्लाओं के चप्पल उठाए।
जातियों में हिंदुओं के वोट का करके विभाजन,
मुस्लिमों को संगठित कर एकतरफ़ा वोट पाए।
जब उपेक्षित हिंदुओं ने देश की सत्ता बदल दी,
कौन हैं वे लोग जो इस नव-प्रणय से डर रहे हैं?
ज़ालिमों ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई।
सेक्युलर सरकार थी, कैसे उसे देता दिखाई।
आस्था के केंद्र अपने हाल पर रोते रहे पर,
एक भी सरकार को इस मामले की सुधि न आई।
आज जब उम्मीद के कुछ फूल खिलने को हुए हैं,
कौन हैं वे लोग जो सच की विजय से डर रहे हैं?
— बृज राज किशोर “राहगीर”