अनमोल
आज कारगिल युद्ध के शहीदों का अमर दिवस मनाया जा रहा था ।शहर में हर जगह देश भक्ति के गीत,स्मारक स्थलों पर शहीदों के गुणगान व उनके परिवारों को सम्मानित किया जा रहा था।
मालतीदेवी भी अभी अभी स्मारक स्थल से लौटी थी।जिला सैन्य अधिकारी अपनी जीप से घर तक सम्मान सहित छोड़ने आए थे।
मालती आते ही अपनी इजी चेयर पर निढ़ाल सी बैठ गई। सुनीता शीघ्रता से पानी का गिलास थमाते हुए बोली,”मेमसाहब!आप ठीक तो हैं न?”
“हाँ हाँ, मैं ठीक हूं।”मालती ने खुद को संभालते हुए कहा था।
“मैं आपके लिए गरमा गरम अदरक वाली चाय लेकर आती हूँ , आप आराम कीजिए” कहकर वो रसोई घर की ओर लपकी।
मालती सोचने लगी समय का बहाव भी कितना तेज होता है।देखते देखते 22 वर्ष हो गए अमोल को गए हुए।लेकिन आज भी उसकी यादें जस की तस हैं।कभी कभी यह दर्द साल जाता है ….. काश! वो अंतिम पड़ाव को भी पार कर गया होता तो आज यह घर पोते पोतियों की चहल पहल से सरोबार होता ।
अमोल उसकी इकलौती संतान था।बचपन से ही उसके आर्मी आफिसर बनने के शौक व उसकी लग्न परिश्रम ने शीघ्र ही उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा दिया। एक दिन ऐसा आया जब वो कैप्टन के पद पर आसीन हो उसके सामने यूनिफार्म में खड़ा था तब गर्व से उसका सीना चौड़ा हो गया था। सभी नाते रिश्तेदार उसे ‘शेरनी’ कहकर संबोधित कर रहे थे।
अमोल की भुआ ने तो यह तक कह दिया,”भाभी! सच में बेहद जिगरा है आपका, अपनी इकलौती संतान को आर्मी में भर्ती करवा दिया। मैं तो कभी न कर पाती।खास तौर पर आजकल के जो माहौल है,
कुछ उन्नीस बीस हो गया तो?भाई साहब का साया भी तो नहीं सिर पर …..?
सुनकर माँ का हृदय एक बार जोर से धड़का जरूर था पर अपने मन पर काबू पाते हुए शीघ्रता से बोली थी,”प्रीत! होनी को कौन टाल सकता है। हर किसी की मृत्यु का समय और स्थान निश्चित है। हम कौन हैं, कुछ मुकर्रर करने वाले?”
“अच्छा छोड़ो। आज खुशी का मौका है। इस वक्त को
एन्जॉय करते हैं” कहकर उसने बात का रुख बदल दिया था।
परन्तु उसकी कही एक एक बात आज तक उसके कानों में गूंज जाती है ।
अमोल ने अभी जिंदगी को जिया ही कहाँ था?
अभी तो उसने सपने बुनना शुरू ही किए थे।
अकसर कहता ,”माँ तुम्हारे लिए जल्दी ही एक अच्छी सी बहु ढूंढ कर मैं निश्चिंत होकर ड्यूटी पर जाऊंगा। मेरी एक ही तमन्ना है मैं अपनी माँ की झोली को ढेर सारी खुशियों से भर दूं।मेरी जिंदगी तो बस मेरी भारत माँ और मेरी माँ पर कुर्बान,” कहते हुए उसे गोद में उठा लेता। किसको पता था,’उसके इम्तिहान का वक्त इतनी जल्दी आ जाएगा’।वह तो हँसते हँसते
भारत माँ के लिए कुर्बान हो भी गया परंतु एक माँ होने के नाते मालती के हृदय में कभी कभी टीस उठती कि काश!मैंने अमोल को डाक्टर या इंजीनियर बनाया होता, लेकिन अगले ही पल उसकी आत्मा उसे फटकार देती।अगर हर माँ इस तरह स्वार्थी हो जाए तो भारत माँ के सपूत कौन कहलाएगें फिर उसकी रक्षा कौन करेगा?
तुरंत उसकी आँखों के समक्ष आज सुबह का दृश्य घूम गया।वो वेटिंग रूम में बैठी थी तभी कर्नल बत्रा ने प्रवेश किया।उसे सामने देख पहले तो एक जोरदार सैल्यूट दिया फिर उसे सम्मान सहित अपनी कुर्सी पर बिठाते हुए बोले,”माँ जी! आपकी जगह यहाँ है ।आप कैप्टन अमोल की माँ ही नहीं हम सब की माँ हैं।आज कैप्टन अमोल होते तो इस कुर्सी पर होते।कोटि कोटि नमन आपको ।आप जैसी माँ
की वजह से ही तो हमारे भारतीयों का मान है गौरव है।आपके साहस संस्कारों व बलिदान की छवि थे कैप्टन अमोल।
माँ!आप कभी भी खुद को अकेले मत समझना हम सब आपके ही बेटे हैं, हमेशा आपकी सेवा में नतमस्तक रहेंगें। और यह सच भी था अमोल के जाने के बाद उसके मित्रों ने व जिला सैन्य अधिकारियों ने उसकी हर छोटी बड़ी जरूरत का ध्यान रखा उसके दुख सुख में साथ रहे, उसे कभी भी अकेले नहीं छोड़ा।बल्कि अपनी हर छोटी बड़ी खुशियों में शामिल करके हमेशा यह अहसास करवाया …..तुमने तो एक अमोल को कुरबान किया बदले में वो कितना गर्व मान सम्मान और न जाने कितने अनमोल पुत्र उसकी झोली में डाल गया।
“मेम साहिब”! चाय!कहते हुए सुनीता ने काँधे को छुआ ….हाँ। हाँ …मालती के भीतर चल रही मौण स्मृतियों का दौर मानो थम सा गया आँखों से अश्रुओं की धारा बह निकली….परन्तु यह आँसु गर्व के थे। एक भारत माँ के सच्चे सपूत को ढेर सारे आशीर्वाद व सच्ची श्रद्धांजलि के।
— विजेता सूरी रमण