वक़्त वाक़ई है बुरा या सिर्फ़ मुझको लग रहा है
मैं पड़ा हूँ उसके पीछे वक़्त आगे भग रहा है
ग़लत .होगा मैं अगर सो जाऊँगा इस रात में
मेरे सिरहाने पे बैठा वक़्त भी तो जग रहा है
मैं तो खुश रहना ही चाहता हूँ जीवन में सदैव
क्या करूँ लेकिन मेरी ये वक़्त दुखती रग रहा है
मैं कि निश्छलता .से चाहता हूँ बिताना हर घड़ी
बहुत छद्मी वक़्त है ये जो कि मुझको ठग रहा है
मैं कभी भी डगमगाया हूँ नहीं इस वक़्त में
हाँ मगर अक्सर मेरा बस वक़्त ही डगमग रहा है