आँखें
आँखें मन की है तस्वीर
गम हो या मन की हो पीर
खुशी व गम का चित्र दिखाता है
दुःख का आँसू बरसाता है
प्रेम में इशारे दे जाती है मुकाम
नफरत में कर देती है बदनाम
गुस्से का करती है इजहार
आँखों को है ऑखों से प्यार
दिल गम में जब जब रोता है
गम को ऑसू ही धोता है
ऑखें जब होती है लाल लाल
उठ जाती है तब कई एक सवाल
कुछ नयन नशीले होते है
मदिरा का प्याले पीते हैं
शायर की शायरी का है पैगाम
कमल नैनी देती है पयाम
आँखों ऑखों में होती है बात
परिदृश्य उभर जाती है जज्बात
पलक झपकते हैं दिन रात
इजहारे हो जाती हर राज
कोई झील की उपमा दे जाता
शायर प्रीत गीत है लिख पाता
मृगनयनी जब कहलाती है
मन पागल सा कर जाती है
नैन मदहोश जब होता है
नशा बेहोश कर देता है
नयन प्रेम समझाती है
मोहब्बत की भाषा कह जाती है
— उदय किशोर साह