नयन मे चाहे चारों पहर नीर बहे,
याद रहे कि वह नीर किसी को ना दिखे।
जीवन तुम्हारे चरित्र से झलके,
नसों से रिसता रुधिर कहीं न छलके।
तुम जो हो, जिन पीडाओं को तुमने सहा,
ईश्वर एक मात्र उसका साक्षी रहे।
अपने हृदय की कुण्ठा का कमल तुम्हारे भीतर पनपा,
वह ज्वालामुखी केवल तुम्हारे वक्षस्थल मे रहे।
मझधार मे डूबती तुम्हारी नैया,
तुम्हारे ही हाथों बस पार लगे।
किसी और से अपेक्षा कर के,
मन मे विदीर्ण्ता के भाव न जगें।
एकल छांव तुम्हारे भावों की,
चाहे जितनी तेज वक़्त की आंच मे सिकें,
याद रहे, तुम्हारे जीवन के केंद्रीय भावों को
प्रोत्साहन की सीढ़ियाँ चढ़ाते हुए,
तुम्हारे माता-पिता का सर ना झुके।
— रेखा घनश्याम गौड़