गज़ल
तेरी चौखट पे सब भुला बैठे ।।
माँगना क्या था माँग क्या बैठे ।।
हम बुज़ुर्गों के पास क्या बैठे ।।
सारी दुनिया का ज्ञान पा बैठे ।।
खुद मजाक अपना ही उड़ा बैठे ।।
उनको जो हाल ए दिल सुना बैठे।।
ढ़ाई आखर ही तो पढ़ाने थे।
जाने क्या क्या उसे पढ़ा बैठे ।।
जब से हक के लिए गुजारिश की।
सारे अपने खफा खफा बैठे।।
देख कर बेरुखी तेरे रुख पर।
क्यों न दिल बैठे हौसला बैठे ।।
ए नितान्त आज इस तरह गुमसुम।
किन खयालों में आशना बैठे ।।
— समीर द्विवेदी नितान्त