कुण्डली/छंद

प्रेम के सवैया

जब प्रेम दिखा तब रूप सजा,जब रूप सजा तब प्रेम महान।
मन है चहका,दिल है बहका,जब दे नित ही कुछ तो अवदान।
अनुमान नहीं कुछ प्रेमसुरा,कितनी महिमा गरिमा पहचान।
जब रात सजे,कुछ बात बढ़े,महके चहके झलके मतिमान।।
सहगान सुमंगल प्रीत लिये,अनुगीत लिये नवगीत कमान।
झनकार बहार सुहावन है,मन भोर सुप्रीति रचे सुखखान।।
नित भान पले नहिं और खले,हर शाम सुहावन जीत महान।
सुखधाम बहाव लगाव सदा,अति प्रीति सुधाम ललाम रुझान।।
जब नाथ करें प्रभुता गुरुता,तब मान मिले नर को यशगान।
हितवाद पले जनगान पले,जल रोज़ बहे करुणा बलवान।
ग़म दूर भगें,मन जीत वरे,रहती नदिया बलवेग रुझान।
हर साँस चले,प्रिय मोह भरे,यह जीवन तो चढ़ता परवान।।
अहसान करे बलवान करे,हरता नित प्रेम सदा अवसाद।
खुशियाँ विकसें मन ना तरसे,नित नेह करे नहिं तो प्रतिवाद।
प्रभु ने कर दी दिल की रचना,तबसे नित शोभित  प्रेमप्रसाद।
अनुगान नया अनुमान नया,अरमान नया नव शोभित नाद।।
मुझको तुमको इक चाहत है,यह प्रेम सदा बहता प्रतिमान ।
जब भोर हुई तब गीत नया,तब प्रीत बहार दुलार विहान।
मति प्रेम रचे नव नेह वरे,करता नित प्रेम दुखों अवसान।
सुख गीत रचे नित जीत रचे,दिल की नव प्रीति सदा गतिमान।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]