प्रभाव क्षेत्र
आजकल की इस भाग दौड़ की दुनिया मे हम जाने अनजाने एक ऐसी रेस में दौड़ने में लगे हुए हैं जिसका क्या परिणाम आयेगा ये हमको पता ही नहीं होता, आईये एक उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करते हैं।
आपको एक आठ साल के बच्चे के बारे में पता चलता है, जिसकी स्कूल जाने की बहुत इच्छा है मगर वो स्कूल नही जा पा रहा, उसके पास जो बैग है वो भी फटा हुआ है और उसके पास पढ़ने की कॉपी किताबें भी अधूरी हैं।
अब आप चाहते हैं कि इस बच्चे का भविष्य उज्ज्वल हो और आप इसकी मदद करने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं, तब आपको बताया जाता है कि वह बच्चा अफगानिस्तान के युद्ध क्षेत्र के बहुत पास के किसी गाँव में रहता है तब आप सोचते हैं कि ये मेरे लिये मुमकिन नही है कि उस बच्चे की मैं किसी प्रकार की मदद कर सकूं।
इसमें समझने वाली बात ये है कि हमको अपने प्रभाव क्षेत्र के भीतर की चीजों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए न कि उन सब जगह की जहाँ हमारा प्रभाव नही पड़ सकता।
मैं अक्सर लोगों को किसी देश की विदेश नीति, निर्णय लेने पर बहुत लंबी लंबी कहानियां सुनाते हुए देखता हूँ तो मैं ये समझने की कोशिश करता हूँ कि क्या ये डिस्कशन किसी काम को प्रभावित कर सकते हैं या सिर्फ समय का दुरूपयोग करने का साधन हैं। मेरे अनुसार हमारे प्रभाव क्षेत्र के बहुत से काम अधूरे पड़े हुए हैं और हम खुद को बेकार के कामों और डिस्कशन में उलझा कर जी रहे हैं।