महँगाई सत्यं ब्रह्म मिथ्या
विद्वान कहते हैं कि इस जगत में सब नश्वर है। गलत बात। एक चीज़ और है जो शाश्वत, अजर, अमर और अविनाशी है। बताइए क्या? आत्मा। एकदम गलत जवाब। फिर वही घिसे-पिटे जवाब!!! किसी ने देखा है क्या इस आत्मा नाम के कीड़े को? कहाँ से आता है? कहाँ निकल जाता है? बस युगों से हमारे बाप’-दादा घुट्टी पिलाये जा रहे हैं और हम आँख मूंदकर गटके जा रहे है। भगवान बुद्ध की बात कोई नहीं मान रहा कि जिस सत्य का अनुभव न हो, उसे न स्वीकारो। मैं बताता हूँ अब सही उत्तर। यह है – महँगाई। इस देवी को इस जगत में आज तक किसी ने जन्मते देखा न मरते। हर युग में विराजमान। किस के बाप में और किस आयुध में इसे नष्ट करने का दम है? अजी! नष्ट करना तो दूर कोई सूत भर कम कर के दिखा दें तो उसे यह संसार *विश्व -रत्न* से सम्मानित कर दे। सुरसा भी एक सीमा के बाद अपना थूथन बंद करने पर विवश हो गई थी। पर महँगाई! मजाल किसी की? जो इसका विस्तार रोक सके। यानि महँगाई, हनुमान हैं। जिसका विस्तार न कोई रोक सका, न रोक सकेगा। मेरे पिताजी कहते थे उनके बचपन में दस रुपये किलो असली घी आता था। दादा जी के ज़माने मे वही घी दस पैसे का था। परदादा किसी धेला और कौड़ी की शक्ति का बखान करते नहीं थके। पर आज तो उन आदिकालीन आर्थिक अस्त्रों यानि कौड़ी, धेला पाई को महँगाई ने समूल नष्ट कर दिया लड़कपन में नानी से चवन्नी मिल मिलने पर मुझे अंबानी का सी अनुभूति होती थी। किंतु मेरी लंगोटिया सखी का वध भी इस महँगाई ने बड़ी क्रूरता से कर डाला।
महँगाई की शक्ति परमाणु बम से भी अधिक है। इस अगोचर , निराकार शक्ति ने सरकारों उखाड़ फेंका, राजनेताओं को धूल चटा दी। अर्थशास्त्रियों को छठी का दूध याद दिला दिया साहब! डॉलर, दीनार, रूबल, पौंड, टका, रुपया ,येन ने ,एनकेन प्रकारेन इसे हराने का प्रयास किया किंतु घुटने टेकने पड़े। इस अमर शक्ति का कोई बाल भी बाका ना कर सका। किशन जी का आश्वासन भी यहाँ काम का नहीं कि जो पैदा हुआ है , वह एक दिन अवश्य मरेगा। क्योंकि इसे किसी ने पैदा नहीं किया। इसके माँ-बाप का पता नहीं। यह वह वक्ति हे जो अवध्य है इसे आग जला नहीं सकती। जल भीगा नहीं सकता वायु सुखा नहीं सकता। याद कीजिए कृष्ण ने अर्जुन से कुरुक्षेत्र में पढ़ाते समय क्या कहा था –
*नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
आप लोग समझे नहीं। यह उन्होंने आत्मा-वात्मा के लिए नहीं, कलयुग में अवतरित होनेवाली इसी महँगाई देवी के लिए कहा था। उन्हे पता था उनके साथ द्वापर समाप्त हो जायेगा। कलयुग आनेवाला है। महँगाई ही इस दुनिया की आत्मा रहेगी। पर आप सब मूर्ख हैं। आत्मा के फेर में इहलोक और परलोक को सँवारने में लगे रहते हैं। *महँगाई सत्यं ब्रह्म मिथ्या।*
महँगाई को रोकने के लिए सरकार गरीबों को पकड़ती है। जिनको पहले से ही महँगाई ने पकड़ रहा है। सरकार गरीबों के लिए रेखा खींच देती है। महँगाई देवी चालाक है। कबड्डी के खेल की चैंपियन। कैसी भी रेखा खींचो उसे लाँघकर सारे गरीबो और सरकार को पछाड़ देती है। खो-खो में दक्ष है। सामनेवाले को निपटाने के लिए कब किसको ‘खो’ देना है कि उसका सब खो जाय। इनसे सीखिए। कभी टमाटर को खो दे दिया तो कभी प्याज को। कभी तेल को तो कभी दाल को। नहीं तो पेट्रोल तो जिंदाबाद है ही। ऐसी धोबी पछाड़ दाँव देती है कि सब चारो खान चित। उसने रहीम चाचा के इस दोहे पर पी एच डी कर रखी है –
*एकहि साधे सब से, सब साधे सब जाय।*
*रहिमन मूल ही सीचेंगे, फूले फले अघाय।।*
हमारे देश के राजनैतिक दल असलियत जानते हैं कि इसका तोड़ उनके पास क्याकिसी के पास भी नहीं है, लेकिन इस शक्ति को साधना का दावा ऐसे करते हैं जैसे सत्ता पर विराजते ही उनके पास लघिमा सिद्धि आ जायेगी। और वे पवनपुत्र बनकर उसका अंत कर देगें। वे गलतफ़हमी मे हैं । वास्तव में अब महँगाई सुरसा नहीं हनुमान है। जिसका सिर्फ विस्तार हो सकता है। उसके मुख जा कर सुरक्षित निकलना असंभव है। हनुमान तो युगों तक चिरंजीव है। उसे कैसे मारोगे?
— शरद सुनेरी