असत्याग्रह (व्यंग्य)
मैं बचपन से बहुत झूठ बोलता हूँ। लेकिन सत्याग्रह करने से कभी नहीं डरा। इस मामले श्रीकृष्ण मेरे आदर्श रहे। रंगे हाथों माखन चोरी करते पकड़े जाते लेकिन यशोदा मैया के सामने उनका सत्याग्रह सफल हो जाता। इसलिए सत्याग्रह करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। मुझे गर्व है कि मैं भारतीय हूँ ।
सतयुग से सत्य का पालन हो रहा है। राजा हरिश्चंद्र इसके इकलौते ब्रांड एंबेसेडर थे। त्रेतायुग में भगवान राम ने इस परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। क्या मिला? बेचारे जीवनपर्यंत जंगल में भटकते रहे और सारा दांपत्य अलगाव में बीता सो अलग। श्रीकृष्ण समझदार थे। वे सत्य-वत्य के लफड़े में नहीं पड़े। षठे षाठ्यम समाचरेत्। के सिद्धांत पर चले। एक खानदान को निर्मूल करवा दिया। लेकिन अपने ऊपर आँच भी नहीं आने दी । काजल की कोठरी में गये ही नहीं अपितु सोये भी पर कालिख का नामोनिशान नहीं! कलयुग मे गाँधी जी ने यह बीड़ा उठाया था। आजतक यदाकदा गालियाँ खाते रहते हैं। इसलिए अक्सर लोग सत्य के चक्कर में नहीं पड़ते। सत्य अचछी चीज़ है। अच्छी चीज़ों को संभाल और सँवार कर शो केस में सुरक्षित रखा जाता है। व्यवहार में असत्य को साथ लेकर सब चलते हैं। इसलिए सत्य की इतनी पावन परंपरा होने के बाद भी देश में असत्य का बोलबाला है। सत्य का मुँह …।
आज सत्याग्रह की टोली में समाज और देश के भ्रष्ट शिरोमणियों का मेला था। असत्य सफेद कपड़े पहनकर सबसे आगे मुस्कुराता हुआ उनका नेतृत्व कर रहा था। लग रहा था मानो सब मिलकर सत्य की शोकसभा में जा रहे हैं, उसके भूत का आग्रह करने। छाती पीट-पीटकर और बिलख-बिलखकर सत्य की अरथी निकाली जा रही थी लेकिन नारे ‘ज़िदाबाद’ के सुनायी आ रहे थे। महिमामंडन का यह तरीका भी लाजवाब है। भाई लोकतंत्र है। इतना तो अधिकार बनता है अपुन का। अब ऐसे में ‘असत्याग्रह’ हो जाय तो हमारा क्या दोष? हमाम में सब नंगे हों तो कपड़े पहनना। शिष्टाचार नहीं भ्रष्टाचार और दुराचार है। इसलिए सत्याग्रह छोड़िए असत्याग्रह को अपनाइए इसी में समझदारी है। असत्यमेव जयते!
— शरद सुनेरी