कविता

इजाजत

यह विडंबना ही तो है
कि हम आप सब जानते मानते हैं
फिर भी घमंड में इतराते हैं।
यह जाकर भी अनजान बनते हैं
एक अदृश्य सत्ता है
जो दुनिया को चलाती है,
उसकी इजाजत के बिना
हवा भी नहीं रेंग पाती है
मगर ये बात हमारे दिमाग में
भला क्यों नहीं आती है?
हम इतने मगरुर हो रहे हैं
जिसकी इजाजत के बिना
एक सांस तक नहीं ले सकते
एक कदम तक नहीं चल सकते,
उसे ही चुनौती दे रहे हैं
खुद को सर्वशक्तिमान समझ रहे हैं।
ये भी उसी सत्ता की इजाजत है,
वही सत्ता जब आँखे तरेर देती है
तब हम धूलधूसरित हो जाते हैं
हम क्या थे, क्या हैं
ये पहचान भी भूल जाते हैं,
तब उसी सत्ता के आगे नतमस्तक हो
अंत में पनाह मांगते, गिड़गिड़ाते हैं
इजाजत पर इजाजत माँगते हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921