कविता

एक और बुद्धन आएगा

खामोशी से निकल गया था वह,
विकास की तलाश में
अर्जित करने ज्ञान का प्रकाश
कुछ रश्मियाँ हाथ आईं
सरस्वती की कृपा थी उस पर
बढ़ता गया बिना सीढ़ियों के
जीवट था, हर पल थपेड़ा सहता
जन्मगत अभिशाप का
चाह थी उसे केवल
अपने समुदाय के विकास की
अपनी मिट्टी, वन की
अपने ढोल, नृत्य की
अपनी स्त्रियों की अस्मिता की
बेमौत मारे जाते युवाओं की
किसान से मजूर बनने की प्रक्रिया का
दला गया वह, मारा गया,
प्राप्त था उसे कानूनन अधिकार
समानता का,
अनभिज्ञ था वह, शिक्षित समाज से
विचारों के दोगलेपन से
उसके लौटने का है इन्तजार
आखिरी साँस के पहले,
उसे निहार ले, छू ले
नहीं पता है माँ को
निकल गया है वह खामोशी से
नहीं लौटता है कोई वहाँ से
बुद्धन लिए  ज्ञान का प्रकाश
अब कभी नहीं आएगा
पर आत्मा नहीं होगी पराजित
एक और बुद्धन आएगा।
— डाॅ. अनीता पंडा ‘अन्वी’

डॉ. अनीता पंडा

सीनियर फैलो, आई.सी.एस.एस.आर., दिल्ली, अतिथि प्रवक्ता, मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय,शिलांग वरिष्ठ लेखिका एवं कवियत्री। कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन मेघालय एवं आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा शिलांग C/O M.K.TECH, SAMSUNG CAFÉ, BAWRI MANSSION DHANKHETI, SHILLONG – 793001  MEGHALAYA [email protected]