तुम संग हर बसंत
अनुराग लिप्त,उन्माद राग
आर्द्र नयन जोहते बाट।
शून्य हृदय की पीड़ा अपार,
प्रिय सुन लेते करुण पुकार!
उद्विग्न मन और चंचल बयार,
कुंजन में बिखरा विरक्ति राग।
वसुधा,व्योम और दसों दिशाएं,
समझ पीर मेरी, नीर बरसाएं।
विस्मृत सारे हास परिहास,
सकल सृष्टि लगती उदास।
स्वप्न सजीले ओझल सारे,
आस में बैठी जगत बिसारे।
आघात विरह का बारंबार,
छलनी कर देता मन का विश्वास।
दलदीठ से बहती अश्रु धार,
तुम बिन सूने पड़े घर द्वार।
तुम संग मधुर हर मधुमास,
तुम बिन रीते तीज- त्यौहार।
मन की मात्र यही है आस,
प्रिय जो आ जाते इक बार!
— कल्पना सिंह