बच्चों के मुरझाते बचपन को संवारा जाए
बच्चे भगवान का रूप होते हैं। बच्चे के बचपन को शारीरिक ,मानसिक एवं बौद्धिक रूप से सक्षम बनाना बहुत ही आवश्यक होता है। आज का बच्चा कल का भविष्य होता है।
प्रतिवर्ष 12 जून को ‘बाल श्रम निषेध दिवस’ के रूप में मनाया जाता है जिसमें बाल श्रम के प्रति विरोध , जागरूकता एवं बाल श्रम को समाप्त करने का संकल्प लिया जाता है।बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन) के द्वारा सन 2002 में 14 वर्ष से अल्पायु के बाल मजदूरी से बचाकर उन्हें शिक्षा से जोड़ने हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था।बच्चों की समस्याओं को लेकर विश्व स्तर पर सर्वप्रथम अक्टूबर 1990 में न्यूयॉर्क शहर में विश्व शिखर सम्मेलन में जिक्र हुआ था जिसमें 151 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था और उन्होंने इस गंभीर मुद्दे पर विचार विमर्श किया था।बच्चों को कुपोषण ,गरीबी, भुखमरी, शिक्षा व स्वास्थ्य के बारे में।
एक सर्वे के अनुसार देश में आज 7 से 8 करोड़ बच्चे आज अनिवार्य शिक्षा से वंचित है।देश के 5 राज्यों में सर्वाधिक बाल मजदूर हैं जिसमें प्रथम स्थान पर उत्तर प्रदेश, दूसरे स्थान पर बिहार, तीसरे स्थान पर राजस्थान, चौथे स्थान पर महाराष्ट्र और पांचवें स्थान पर मध्य प्रदेश हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में भारत में 5 करोड से ज्यादा बाल मजदूर हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 में दुनिया भर में पिछले 4 साल में बाल श्रमिकों की संख्या 84 लाख से बढ़कर 116 करोड़ तक हो गई।अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार आज विश्व में 5 और 17 वर्ष की उम्र के बीच 15 करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करने को विवश हैं जिनमें से 7.3 करोड़ बच्चे बहुत ही बदतर परिस्थितियों में खतरनाक कार्य कर रहे हैं।जिनमें सफाई, निर्माण, कृषि कार्य, खदानों, कारखानों में तथा फेरीवाले और घरेलू सहायक कार्य आदि शामिल हैं।
हर वर्ष बाल श्रम निषेध दिवस के उपलक्ष एक थीम प्रस्तुत की जाती है। 2021 की थीम -“अभी करो: बाल श्रम खत्म करो” थी। 2022 की थीम -“बाल श्रम को समाप्त करने के लिए सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण” है।
2002 से 2022 तक इन 20 वर्षों में बाल श्रम की संख्या बढ़ती ही जा रही है और विश्व महामारी कोविड की वजह से और भी ज्यादा।
विद्वान हरबर्ट ने कहा है कि -“बच्चे हमारे सबसे मूल्यवान संसाधन है।” छोटे बच्चों की शारीरिक-मानसिक और बौद्धिक क्षमता का विकास करना एवं उसके दुष्परिणामों को रोकना है। आज बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य प्रदान कर उन्हें योग्य इंसान बनाने का संकल्प लेने की अति आवश्यकता है।आज बाल श्रम की समस्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है कई तरह के कानून बनने के बावजूद इसके लिए व्यक्ति, समाज स्वयं को पहल करने की जरूरत है।आर्थिक समस्या से जूझता परिवार बाल श्रम का कारण बना हुआ है। अब यह सामाजिक समस्या राष्ट्रीय समस्या और वैश्विक समस्या बन चुका है ।समाज इस समस्या को मिटाने के लिए अपनी अस्मिता का सवाल उठाएं और अपने स्तर के नियम, कायदे बनाकर इस समस्या को रोके।धर्म गुरुओं का भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह मानव धर्म निभाने का संदेश दे। समाज सुधारक भी समस्या को रोकने का प्रबंध करें और व्यापारी कर्मचारी अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर इमानदारी पूर्वक नैतिक और मर्यादा का धर्म निभाएं। देश में आर्थिक व्यवस्था का आकलन सरकार ईमानदारी पूर्वक करे तो काफी हद तक बाल श्रम निषेध समस्या पर काबू पाया जा सकता है ।
होटलों,रेस्टोरेंट, दुकानों, कल कारखानों ,मजदूरी और कृषि कार्यों में काम करने वाले बच्चों की सेवा लेने से ग्राहक लोक सेवा लेने से मना ही नहीं करें बल्कि विरोध कर एक सच्चे नागरिक के रूप में अपना परिचय देकर आदर्श राष्ट्र की कल्पना करें। सरकारें भीख मांगने वाले बच्चों, कचरा बीनने वाले बच्चों को ,अपराध करने वाले बच्चों हेतु नई-नई योजनाओं के माध्यम से उन्हें सुव्यवस्थित करें।सरकार, परिवारों का आर्थिक सर्वे एवं परिवारों की सदस्य संख्या को ध्यान में रखते हुए उनके रोजगार ,व्यवस्था का प्रबंध करें जिससे बाल श्रम पर अंकुश लगाने में आसानी रहेगी। क्योंकि आर्थिक हालात को जानकर इस समस्या पर अंकुश लगाने में आसानी रहेगी। बच्चा अपने देश का नागरिक होता है कल वह जैसा बनेगा ऐसा देश का भविष्य बनेगा। आज देश में बढ़ती नशा वृत्ति से भी इस समस्या को बढ़ने का अवसर मिल रहा है। घर का मुखिया नशा कर परिवार की व्यवस्था एवं नैतिक कर्तव्य पर कुठाराघात करता है जिसका खामियाजा बच्चों को भरना पड़ता है परिवार का बुरा प्रभाव पड़ने से भी आज बाल श्रम की समस्या बढ़ने का कारण बनी हुई।
— डॉ. कान्ति लाल यादव