कर्म की खुशबू
कर्म की खुशबू जब जब महकेगा
जल थल तेरी भी नमन करेगा
करते जा जीवन में सत्यकाम
महक उठेगा तेरी भी मुकाम
तुम जगत में सबसे उम्दा हो
मानव तन पाया एक बन्दा हो
अपनी कीमत को पहचान
मानव बन रे धुर्त्त बेईमान
दुनियाँ की रीत निराली है
रात अंधेरी भी काली है
सबेरा का दीप जले उजियार
जगमग जगमग होगा संसार
रंगमंच है ये जगतशाला
हर किरदार मंच पे अकेला
मिलजुल कर अब व्यापार
गले मिलेगा सुख दुःख प्यार
यहाँ कोई ना रहा सदैव
खाली आया खाली था जेब
फिर क्यूं करता है मारकाट सहचार
बंद करो लुटने का ये व्यापार
— उदय किशोर साह