जब तुम मिलोगे,
अब उसी दिन दिल खुशी से गुलज़ार होगा।
मैं पूछून्गी तुमसे अलविदा कहे बिना साथ छोड़ जाने की वजह।
हाँ सच है कि तुम्हारी कोई भी दलील मेरे हृदय की वेदना का मरहम कभी नही हो सकेगी।
क्यों कि तुम्हारा जाना मेरे लिए देह से प्राणों के विरक्त होने के समान असहनीय था।
तुम तो जानते थे, किस हद तक मैने चाहा था तुम्हें, और चाहती हूँ अब भी।
फिर यदि तुम मिल भी जाओगे, तो दिल को जो तुम्हारी फुरकत के सदमे लगे हैं, उनकी विवशता तो कम न हो पायेगी।
क्या ही तुम हमें खुश रखे,
तुम्हें तो ख्याल भी नही आया होगा, कि जो तुम्हारे रूठ जाने पर इतना रोती थी,
तुम्हारे ना होने पर किस कदर छटपटायेगी।
एक विश्वास था तुम पर, जिसका बहुत गुरूर था मुझे,
और एक मलाल है, जो विदीर्ण्ता से परिपूर्ण है।
उन वचनों के उपलक्ष्य में, जो तुम्हारी अमानत होने के बावस्ता दिये मैने,
मैं आज भी तुम्हारे इन्तजार मे स्तब्ध, मौन खड़ी हूँ।
खयानत करने से पहले सोचना कहीं मेरी आँखें इन्तजार करते-करते हमेशा के लिए शांत ना हो जायें।
— रेखा गौड़ आचार्य