संस्मरण

कल तक अजनबी

लगभग दो वर्ष पुरानी बात है जब मैं पक्षाघात से उबरने के दौरान पुनः लेखन में सक्रिय हुआ था।
मेरे एक संस्मरण को पढ़कर अहमदाबाद से ७६ वर्षीय बुजुर्ग आ. गोपाल सहाय श्रीवास्तव जी ने अहमदाबाद से मुझे फोन किया। वे मेरे उस संस्मरण से बहुत प्रभावित हुए और जी खोलकर मेरी हौसला अफजाई की। काफी लंबी बातचीत हुई।
एक पल को भी ऐसा नहीं लगा कि इस फोन के पूर्व तक हम एक दूसरे से हर तरह से अजनबी रहे हों। वास्तविकता तो यह है कि हम किसी भी रुप में एक दूसरे को जानते तक नहीं थे, यहां तक कि नाम भी नहीं जानते थे। फिर तो ये सिलसिला बदस्तूर जारी है।
मैं उन्हें अंकल कहता हूं। आज तक हम दोनों की आपस में बातचीत होती रहती है। उनका अपनापन, स्नेह, दुलार ही नहीं सलाह , मार्गदर्शन भी मुझे आल्हादित करता रहता है। उनके व्यवहार में एक पिता का भाव दिखता है। साहित्य से दूर दूर का नाता न होने के बाद भी वे मेरी लेखनी, मेरी उपलब्धियों पर पैनी निगाह ही नहीं रखते, बल्कि प्रोत्साहित करने के साथ वैचारिक सलाह और अपनी सोच से भी रुबरु कराते हैं।और तो और हमारे परिवार तक की पूरी जानकारी रखते हैं, बेटियों से भी बात कर लेते हैं। सबका हालचाल लेते रहते हैं। हमेशा पितृवत भाव दर्शाते हैं। विपरीत परिस्थितियों में मार्गदर्शन सहित हौसला भी देते हैं। मेरी उपलब्धियों पर अंकल आँटी खुश तो होते ही हैं, अपने पुत्र सा गर्व भी महसूस करते हैं। यही नहीं आंटी भी अंकल से तो जानकारी लेती ही रहती हैं, समय समय पर खुद मुझसे बात कर आशीर्वाद प्रदान करने के अलावा बहू( हमारी श्रीमती जी) और हमारी बेटियों का हालचाल भी लेती रहती हैं,तो कभी उनसे सीधे ही बात भी कर लेती हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि बहू कैसी है, पहले पूछती हैं। समय सुविधा रहती है तो सीधे उनसे भी बात कर ही लेती हैं।

सच कहें तो ये अजूबा सा लगता है कि आभासी दुनिया से जुड़ा वो व्यक्ति जिससे अभी मुलाकात तक नहीं हुई है, वो दोनों आज मेरे लिए प्रेरणास्रोत और अभिभावक ही नहीं पितृतुल्य, मातृतुल्य भी हैं। जिसका आशीर्वाद मेरे और मेरे परिवार के लिए किसी कवच से कम नहीं है। ऐसे सहज सरल महान व्यक्तित्व का मेरे जीवन में ऊँचा स्थान है और ख्वाहिश इतनी सी है कि ऐसे भगवान सदृश्य इंसान के चरण स्पर्श का एक मौका तो मिल ही जाये। ईश्वर इतनी कृपा तो जरूर करें।
मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं है कि मेरी सफलताओं, उपलब्धियों और मान सम्मान सहित आत्मीयता का देश, विदेश तक बढ़ते दायरे के पीछे अप्रत्यक्ष रूप से आपका स्नेह, दुलार,आशीर्वाद के साथ निरंतर प्रेरक हौसला अफजाई के पीछे अंकल आँटी का योगदान बहुत अधिक है। जो हर स्थिति परिस्थिति में मुझे उत्साहित करते ही रहते हैं। जिससे विपरीत परिस्थितियों में भी मेरा संबल बन ही जाता है।
आप दोनों सदैव स्वस्थ प्रसन्न रहें और आपके आशीर्वाद से हम अभिसिंचित होते रहें, बस यही कामना करते हुए आप दोनों के चरणों में शीश झुकाता हूँ। सादर नमन,चरण वंदन।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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