अजब सी इस दुनिया का गज़ब का कलाकार हूँ।
हुनरमंद हूँ जो चाहूँ कर सकता ऐसा चमत्कार हू़ँ।
नित पहनता हूँ मुखौटा, मैं लूटता हूँ समाज को।
सब बनें अनजान अब तक कौन जाने राज़ को।
झूठ निंदा छल कपट का करता सदा व्यापार हूँ।
अजब सी इस दुनिया का गज़ब का कलाकार हूँ।
फौलाद बन के तोड़ता हूँ मजदूर बन चट्टान को।
खेतों में फसल की चिंता है सताती किसान को।
मिटाता हूँ भूख देता हूँ अन्न मैं ऐसा कर्म कार हूँ।
अजब सी इस दुनिया का गज़ब का कलाकार हूँ।
मैं प्यार करता हूँ सभी से मैं खोजता भगवान हूँ।
लैला मजनू प्यार की यहाँ मैं रहा एक दास्तान हूँ।
इश्क को हूँ जीतता यहाँ पर मैं बेबफा की हार हूँ।
अजब सी इस दुनिया का गजब का कलाकार हूँ।
विकसित किये हैं उद्योग मैंने देश का उत्थान हो।
अपने लहू से सींचता रहा कि देश मेरा महान हो।
सूखा तन टूटी है झोपड़ी मैं कला का फ़नकार हूँ।
अजब सी इस दुनिया का गजब का कलाकार हूँ।
— शिव सन्याल