विरोध एक लोकतांत्रिक अधिकार है
वैश्विक स्तरपर भारत सबसे बड़े लोकतंत्र का एक ऐसा उदाहरण है, जहां धर्म, जाति भाषा, मजहब, धार्मिक प्रतीक, शक्तिशाली परिवार, आर्थिक सामाजिक वैश्विक स्तरपर ताकतवर व्यक्ति का सहारा काम नहीं आता क्योंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा धर्म निरपेक्ष देश है जहां कोई भी जाति धर्म का व्यक्ति सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठ सकता है जो भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है और उससे भी विस्तृत खूबसूरती उन संविधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के दिशा निर्देशों आदेशों का पालन एक साधारण व्यक्ति से लेकर पीएम सीएम राष्ट्रपति तक को करना होता है।
हालांकि अनेक निर्णय या बयान ऐसे भी होते हैं जो सबको या किसी खास वर्ग धर्म जाति को पसंद नहीं आता या उनके हितों को बाधित होने की संभावना महसूस करता है या किसी बयान से उनके हितों, धार्मिक आस्था, धार्मिक प्रतीक, पीर पैगंबर, गुरु, आचार्य, देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा या हृदय, आस्था, विचारों को ठेस पहुंच पहुंचाते है या कोई समस्या निर्माण होती है तो उसका सरल व आसान रास्ता उसका शांतिपूर्ण प्रक्रिया के तहत विरोध प्रदर्शन कर उसपर चर्चा बहस कर उचित निर्णय से समाधान करना समय की मांग है।
हालांकि यह हमारी भारतीय संस्कृति भी रही है कि हम आदि अनादि काल से हिंसक विरोधी रहे हैं फिर भी हम आधुनिक वर्तमान युग में देख रहे हैं कि आज गांधीगिरी, शांतिप्रिय विरोध, प्रदर्शन, सत्याग्रह, मौन प्रदर्शन, भूख हड़ताल इत्यादि अनेक भारतीय सभ्यता के विरोध प्रदर्शन के प्रतीक धीरे-धीरे घटते जा रहे हैं और तेजी से विलुप्तता की ओर बढ़ रहे हैं और उनके स्थान हिंसात्मक प्रदर्शन, पत्थरबाजी, पेट्रोल बम, आगजनी सहित अनेक आधुनिक आपराधिक प्रवृत्तियों को अपनाया जा रहा है जो राष्ट्र हित और लोकहित के खिलाफ है।
हालांकि विरोध एक लोकतांत्रिक अधिकार है परंतु समस्या का समाधान चर्चा कर उचित निर्णय से समाधान जरूरी है साथ ही किसी भी धर्म या धार्मिक प्रतीक का अपमान करना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है अगर हम इसका विरोध प्रदर्शन करने में हिंसक तरीकों, हिंसक धरना, आतंकवाद, घृणा, विभाजन को अपनाएंगे तो भारत की शानदार तीव्र गति से चल रही विकास की गाड़ी और महत्वपूर्ण विज़न बाधित होंगे और स्वर्णिम, आत्मनिर्भर भारत, नए भारत के विश्व गुरु बनने की चाहना को हम इतने सालों से पीछे धकेलने के दोषी होंगे जो प्रश्न हम अपने आप से भी करना होगा।
बात अगर हम दिनांक 15 जून 2022 को माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी कहा कि भारत, विश्व का सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष देश है और कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, इसके सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठ सकता है। उन्होंने विविधता में एकता के महत्व पर जोर दिया और उन्होंने कहा, साझा करना और देखभाल, भारतीय सभ्यता का मूल मूल्य है।
उन्होंने छात्रों के विविध सवालों के जवाब दिए। इस दौरान कहा कि विरोध एक लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन हिंसक तरीकों का सहारा लेना राष्ट्र के हितों को नुकसान पहुंचाएगा। उन्होंने किसी भी धर्म या धार्मिक प्रतीक के अपमान करने को भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया, जो बहुलतावाद और समावेशिता में विश्वास करती है। उन्होंने कहा, किसी को किसी भी धर्म के खिलाफ अभद्र भाषा या अपमानजनक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। यह स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने इस बात को दोहराया कि भारतीयों को न केवल अपनी संस्कृति पर गर्व है, बल्कि सभी संस्कृतियों और धर्मों का भी सम्मान भी करते हैं। उन्होंने कहा, हम वसुधैव कुटुम्बकम् (पूरा विश्व एक परिवार है) में विश्वास करते हैं।
उन्होंने आज मानवता की प्रगति के लिए विश्व शांति के महत्व पर जोर दिया, कहा, एक सभ्य समाज में आतंकवाद, विभाजन और घृणा की कोई जगह नहीं उन्होंने विधायिकाओं में व्यवधान पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आगे का रास्ता बाधा नहीं बल्कि चर्चा, बहस व निर्णय होना चाहिए और बाधित नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, दलों को आत्मनिरीक्षण (व्यवधानों पर) करना चाहिए कि वे लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं या कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने मीडिया से विधायिकाओं में हंगामे को दिखाने से परहेज करने, लेकिन रचनात्मक बहस को प्रमुखता देने का अनुरोध किया।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विरोध एक लोकतांत्रिक अधिकार है। हिंसक विरोध और किसी भी धर्म या धार्मिक प्रतीक का अपमान भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। समस्या का समाधान चर्चा बहस कर उचित निर्णय से करना जरूरी है, हिंसक तरीकों का सहारा लेना राष्ट्र हित और प्रगति के खिलाफ है।
— किशन सनमुखदास भावनानी