संस्मरण

संस्मरण

एक बार केबीसी में एक लड़का बता रहा था कि मेरी मां की इच्छा की वजह से हम बहन भाई पढाई कर पाये क्यूंकि मां विपरीत परिस्थितियों के कारण पढ नहीं पाई पर उन्होने मन में ठान लिया था कि मैं अपने बच्चों को अवश्य पढाउंगी ! उसकी बात सुन कर मुझे भी अपने पिताजी की बात  याद आगई ,एसा नहीं कि तभी याद आये , तात मात तो हमेशा ही यादों में रहते है |
 पिताजी दस वर्ष के थे कि मेरे दादाजी का देहावसान हो गया, ताऊजी ये सदमा बरदास्त नहीं कर पाये और विक्षिप्त से हो गये कारण घर में पांच ओरतें जिनमें मां व बाल विधवा बहन भूवा तीन छोटे भाईयों की जिम्मे्दारी ! पिताजी की पढाई छूट गई नाजुक कंधों पर जिम्मेदारी आ गई दिन भर दुकान में काम, कथा वाचक पंडित थे कथा वाचन वगेरह के उपरांत रात को पढते साहित्यरत्न और प्रभाकर की परीक्षायैं पास कर जेसे तेसे छोटी मोटी नोकरी लगे. कॉलेज जाने की ईच्छा मन मैं ही रह गई वे बताते थे कि मैं जब डूंगरकॉलेज के आगे से निकलता तो मेरे कदम ठिठक जाते और मन ही मन सोचता मैं तो जा नहीं पाया यहां पर मैं मेरे बच्चों को जरुर पढाऊंगा , और वो संकल्प उन्होंने पूरा किया पहले घर परिवार बहन भाईयो की जिम्मेदारी निभाई फिर हम सबकी.
हम सात बहन भाई हैं , पिताजी समाज कल्याण विभाग कार्यालय सहायक के पद पर थे , मुठ्ठी भर तन्ख्वाह और ढेरों जिम्मोदारियां ! बच्चों की समाज की कहां किस मद में कतरब्योत करते होंगे कैसे हम सब सातों को पढाया होगा आज हमारी  एक दो बच्चों को पालने पढाने मे ही शामत आती है |
बड़े भैया को सीए करवाया बाकी सबको  भी उनकी इच्छानुसार पढाया ग्रेजुवेट पोस्ट  ग्रेजुवेट हुवे अब तो सबसे छोटा भाई ही नोकरी में सीनियर पीए है बाकी सब अच्छे पदों से रिटायर हुवे ! पिताजी यदि अभी होते तो सो वर्ष के होते अभी फरवरी में हमने उनकी सोवीं जन्म शती मनाई ,उन दिनों राजस्थान में स्त्री शिक्षा नहीं के बराबर थी पर उन्होंने घर पर बाल विधवा बहन जो अशिक्षित थी को देख सबक लिया और समाज के विरोध के बावजूद मुझे भी (लड़की) को भी पढाया, सादा जीवन उच्च विचार के धनी थे पिताजी !  दो धोती कुर्ते में जीवन गुजारना , साइकिल चलानी भी नहीं जानते थे पैदल चलते साइकिल खरीदने की सामर्थ्य भी नहीं थी , मगर हम बच्चों को किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी !!!किसी तरह का कोई कर्ज र्नहीं ,बच्चों पर कोई जिम्मेदारी नहीं। सबकी शादियां की सैटल किया !!
शिक्षा की उनकी जगाई  अलख आज व्यास परिवार में उजाला कर रही है, ना केवल बेटे बेटी वरन पोते पोती और उनकी बहुवें सब उच्च शिक्षित और उच्च पदासीन हैं
हमारा अपना कॉलेज है” सिस्टर निवेदिता” लड़कियो से विशेष स्नेह था मेरी मां बताती थी कि मेरी एक बहन दो माह की गुजर गई तब वे खूब रोये कि दो बेटों के बाद बेटी दी वो भी गई, सात पोतियां हैं उनकी सबको खूब स्नेह देते थे, लिखने को बहुत कुछ है पर अब उनको नमन करते हुवे विराम देती हूं |
आज पितृ दिवस पर शत शत नमन।
— गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,