उत्तर पूर्व में असम के गुवाहाटी शहर की यात्रा
यात्रावृत
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उत्तरी पूर्वी भारत की हरियाली ने मुझे सदैव आकृष्ट किया है।
मैं जब – जब वहां गयी हूँ इसकी हरीतिमा से बंध गयी हूँ।
11जून 2022 पुनः मुझे उत्तर पूर्वी भारत की ओर आने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ । अभी तक मैं जितनी बार यहां आयी हूँ अपने पतिदेव के साथ आई हूँ ,किन्तु इस बार आनंद दुगना था क्यों कि हम दोनों के साथ हमारी बेटी काव्या और साथ में मेरे जेठ – जिठानी भी थे ।
11 जून 2022 को 8:45 am हमारी फ्लाइट गोहाटी के लिए रवाना हुई बादलों को करीब से देखते हुए 11:15 am पर हम सभी गुवाहाटी की धरती को छू रहे थे ।
बृह्मपुत्र नदी के किनारे बसा पूर्वोत्तर भारत का यह मुख्य शहर है।यह नगर प्राचीन हिन्दू मन्दिरों के लिए जाना जाता है ।प्राचीन काल मे इसे प्राग्ज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता था।
तीन दिन हमने गुवाहाटी में व्यतीत किये ।
सबसे पहले हम सभी वशिष्ट आश्रम पहुंचे ।मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना वैदिक काल में महर्षि वशिष्ठ ने की थी । यहां उन्होंने ने मां कामाख्या के दर्शन हेतु तप किया था । और मां ने यहां आकर उन्हें दर्शन दिये थे ।
यहां से मेघालय की सीमा निकट है जहां से कई जलधाराएं आती हैं और यहां की #वशिष्ट नदी में समाजाती हैं ।
यह जलधाराएं नगर के विभिन्न स्थानों पर पत्थरों पहाड़ो से अटखेलियां करती दिखाई देती है । हम सभी ने #वशिष्ट नदी के जल से अपने तन – मन को पवित्र किया ।
चारों ओर वन से घिरा यह सुरम्य स्थान यह अनगिनत बन्दरो का भी निवास है । हमने बहुत आनन्द के पल जो यहां व्यतीत किये उन को यादों में सँजो लिया ।
यही गणेश मंदिर और अन्य मन्दिरों के दर्शन कर हम लोग पुनः अपने होटल की ओर चल पड़े ।
दूसरे दिन 5:30am पर हम सभी कामख्या मन्दिर के लिए निकल पड़े । असम के गुवाहाटी में नीलांचल पहाड़ियों पर स्थित देवी कामाख्या का यह मंदिर तन्त्र विद्या का केंद्र और अम्बूवाची मेले का स्थान है । यह 51 पीठों में से एक शक्ति पीठ है । यह मंदिर शक्तिवाद की दस महाविद्याओं,काली,तारा,त्रिपुरसुंदरी ,भुवनेश्वरी ,भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलातामिका को समर्पित मन्दिरो के एक परिसर से घिरा हुआ है ।
यहां माँ के योनि की पूजा होती है ।
22जून से 25 जून तक मन्दिर के पट बन्द होजाते है ये माँ के रज के दिन होते है । इन दिनों दुनिया भर के साधू तन्त्र साधना के लिए यहां उपस्थित रहते हैं ।
हम सभी मंदिर के पुजारी जी के साथ मंदिर में आगे बढ़े ।
माँ की पूजा अर्चना पुजारी जी ने अति उत्तम तरीके से कराई ।हम सभी को माँ के दर्शन कर अनुपम निधि मिल चुकी थी ।
हम सभी ने कुछ घण्टे मन्दिर के प्रांगण में व्यतीत किये । उसके बाद हम सभी अपने गंतव्य होटल के लिए चल पड़े।
हम सभी यहां का बाज़ार देखना चाहते पर मूसलाधार बारिश ने थोड़ा अवरोध उतपन्न कर दिया था ।
अगले दिन प्रातः हम सभी उमानंदा मन्दिर के लिए तैयार थे । सुबह नाश्ता करके हम लोग ब्रह्म पुत्र नदी की ओर चल पड़े । विशाल बृह्मपुत्र नदी के मयूर द्वीप (पीकॉक टापू) पर उमानंदा मन्दिर स्थित है । अत्यंत मनोरम स्थान नदी के मध्य वनाच्छादित रमणीय टापू पर विहंगम दृश्य उपस्थित करता है ।
हम फेरी ( छोटा जहाज )की सवारी करके इस टापू पर पंहुच गए नदी के मध्य हरियाली ही हरियाली ,
नयनाभिराम दृश्य ।हमलोगों ने मन्दिर की ओर प्रस्थान किया लगभग 100 सीढ़ियां चढ़ कर हम मन्दिर के मुख्यद्वार पर पहुंचे द्वार के दाहिनी ओर गणेश भगवान का मंदिर जिसके आगे मूषक राज विराज मान थे । गणपति जी के दर्शन के उपरांत हम उमानंदा मन्दिर में पहुंचे । मन्दिर के मुख्य देवता उमानंद भगवान हैं। यहां के पुरोहित जी ने विधिवत पूजा अर्चना करवाई ।
इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है जिसमे मां पार्वती की प्रतीक स्त्री आकृति उभरी हुई है । माँ पार्वती का एक नाम उमा भी इसी कारण इसे उमानंदा कहा गया ।
मन्दिर के चारो तरफ पृकृति का दिव्य अद्भुत सौंदर्य बिखरा हुआ है। जिस पर्वत पर ये मंदिर है ,उसे भस्मकाल के नाम से जाना जाता है ।कालिका पुराण के अनुसार शिव ने इसी स्थान पर प्रथम बार भस्म को अपने शरीर पर लगाया था।इसी जगह पर भगवान शिव ध्यान मग्न थे और कामदेव ने शिव के योग को बाधित किया था , और शिव की क्रोधाग्नि ने कामदेव को भस्म कर दिया था ।इसीलिए यह पहाड़ी #भस्मकाल पहाड़ी कहलाई ।
इस मंदिर में भगवान विष्णु , सूर्य , गणेश आदि देवताओं की भी प्रतिमाएं है । पूजा अर्चना के बाद प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य को नयनों में बसाकर हम वापस फेरी की ओर चल पड़े ।पुनः नदी को पार कर वापस आगये । हल्का फुल्का जलपान ग्रहण कर वापस अपने होटल आ गए ।
कुछ देर विश्राम के बाद हम सब श्री डॉल गोविन्दा मन्दिर के लिए चल पड़े। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र के उत्तर में #चन्द्रबहरती पहाड़ी पर स्थित भगवान कृष्ण का मंदिर है । #रोप वे घाट से हम सभी ने
रोपवे द्वारा मन्दिर के लिए प्रस्थान किया ।
आकाश रज्जु मार्ग से विशाल बृह्मपुत्र का अद्भुत नज़ारा, बीच मे पड़ते हुए टापू ,नौकाएं, छोटे जहाज उसपर तेज बारिश की अप्रतिम छटा का अवलोकन करते आनंद में डूबे हुए हम सब कब नदी के पार आ गए पता ही नहीं चला ।लगभग डेढ़ दो किलो मीटर पैदल चलकर हम मंदिर प्रांगण में पहुंच गए ।
मन्दिर में प्रशाद ,फूल माला चढाया दीपदान किया ततपश्चात भगवान का भोग खीर खाई। कुछ क्षण वहीं रुक कर हम पुनः आकाश रज्जुमार्ग से प्रकृति की शोभा को निहारते हुए वापस नदी पार आगये । वहां से इनोवा द्वारा हम अपने होटल आगये ।यात्रा अभी समाप्त नही हुई थी ।बारिश भी अपनी रफ्तार पकड़े हुए थी , पर हम कब रुकने वाले थे ।
अगली सुबह हम फिर निकल पड़े थे। भीमेश्वर धाम ज्योतिर्लिंग मन्दिर के दर्शन के लिए ।
लोकल ट्रांसपोर्ट के द्वारा हम लोग मन्दिर के प्रथम द्वार से अंदर आ गए कुछ दूर पर गाड़ी को हमे छोड़ना पड़ा । क्यों कि वहां से पैदल जाने का ही मार्ग था ।
आगे चलकर प्रथम गणेश जी मन्दिर था । सर्व प्रथम हमलोगों ने गणपति का दर्शन किया फिर लगभग 400 मीटर पैदल चलते हुए प्रकृति के सानिध्य में मन्दिर के मुख्यद्वार तक पहुंच गए रास्ता इतना सुरम्य था कि, पता ही नही चला ।
हल्की बौछार सारी थकान को मिटा रही थी ।
मनोहारी पर्वतो, वनों और खूबसूरत निर्जन घाटियां उसके बीच झर – झर झरती निर्झरणी के मध्य अपने दिव्य रूप में भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं । चौबीसों घण्टे यह पहाड़ी नदी भोलेनाथ का जलाभिषेक करती रहती है ।
शिव पुराण में अध्याय (20 में श्लोक1- 20और अध्याय 21 में श्लोक 1 से 54 ) तक ज्योतिर्लिंग की कथा का वर्णन है ।जिसके अनुसार कामरूप राज्य के इन पर्वतों के बीच यह लिंग स्थापित है।
अत्यंत मनोहारी रमणीय स्थान जहाँ बस जाने को मन करे ।
हल्की बारिश के साथ 1-2 घण्टे हमने यहीं बिताए और फिर चल दिये तिरुपति बाला जी मंदिर दर्शन के लिए।
तिरुपति बालाजी मन्दिर लोखरा क्षेत्र में स्थिति गुवाहाटी का एक भव्य सुंदर मन्दिर है।जो दक्षिण भारत के प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर की प्रतिकृति है । इस परिसर में बालाजी के सामने उनके वाहन गरुण जी का मंदिर है ।देवी पद्मावती (लक्ष्मी) और माँ दुर्गा का मंदिर है ।
मन्दिर शुद्ध सफेद स्थापत्य संरचनाओं द्वारा निर्मित है ।दीवारों में उकेरे गए देवी देवताओं के चित्र से मन्दिर की सुंदरता दसगुना बढ़ जाती है ।
लकड़ी के दरवाज़ों में सुंदर नक्काशी और दस्तकारी देखते बनती है ।
हमने मां पद्मावती के दर्शन कर बाला जी के दर्शन किये उसके बाद माँ दुर्गा के दर्शन किये । मन्दिर परिसर में बने स्टाल में हम सभी ने दोषा खाया चाय पी और कुछ पल विश्राम के बाद हल्की बारिश के साथ हम पुनः अपने होटल आ गये ।
गुवाहाटी का म्यूज़ियम ,कला क्षेत्र भी देखने योग्य है ।
यहां का फैंसी बाजार अपने आप मे अनोखा है जहां असम क्षेत्र की सभी वस्तुएं उपलब्ध रहती हैं पर अफसोस बहुत बारिश के रहते इसबार खरीदारी अधूरी रह गयी ,जो फिर कभी अवश्य पूरी होगी ।
यहीं पर हमारा असम में गुवाहाटी भृमण पूरा हुआ । अब आगे हमे मेघालय भृमण पर निकलना है । बाकी बाते मैं अगले लेख में साझा करूंगी । आज यहीं तक…
मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”