स्वार्थी मन
मन स्वार्थी है
ये कहना आसान है
मगर मन स्वार्थी क्यों है
ये सोचने का हमारा मन नहीं है।
क्योंकि हम खुद स्वार्थी हैं
हम स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं
दोष मन को दे रहे हैं
क्योंकि आरोप लगाना हमारी आदत है।
अपनी बुद्धि विवेक का इस्तेमाल
हम स्वार्थ के लिए करते हैं
और बड़ी शान से दोष मन पर मढ़ देते हैं।
फिर अगर स्वार्थी मन है तो
भला इसमें मन का भला दोष कहाँ है?
हम स्वार्थी हैं, तो हम बड़े पाक साफ हैं
तो फिर मन भी यदि स्वार्थी है
तो आखिरर दोषी कैसे है?
क्या उसके काँटे उगे हैं
जो हमें चुभ रहे हैं
या फिर अपने स्वार्थ की खातिर
मन को स्वार्थी सिद्ध करने की कोशिश में
बलि का बकरा बना रहे हैं।