आओ मिट्टी और पर्यावरण की रक्षा करें
वैश्विक स्तरपर आज हर देश पर्यावरण समस्याओं का सामना कर रहा है जिसका समाधान खोजने उसपर अमल करने के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सभी देश एकत्रित होकर पर्यावरण की सुरक्षा के मुद्दों पर अनेक उपायों की चर्चा कर उसके क्रियान्वयन करने में लगे हुए हैं जिसमें पेरिस समझौता सहित अनेक ऐसे समझौते शामिल हैं जो मानवीय जीवन को पर्यावरण के खतरों से बचाने के लिए मील का पत्थर साबित होंगे।
बात अगर हम भारत की करें तो भारत न केवल हर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से पर्यावरण की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान और सहयोग प्रदान कर रहा है बल्कि घरेलू स्तरपर भी अनेक लक्ष्यों को भी अपने टारगेट समय से पूर्व पूर्ण करने की ओर अग्रसर है। राष्ट्रीय स्तरपर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अनेक सामाजिक, सरकारी, सरकारी, निजी संस्थाएं कार्य कर रही है परंतु अगर वास्तव में हमें पर्यावरण को सुरक्षित करना है तो हर नागरिक को इस पर्यावरण सुरक्षा संबंधी यज्ञ में अपने सहयोग रूपी आहुति देनी होगी और अभियान चलाकर, आओ मिट्टी और पर्यावरण की रक्षा करें, का नारा देना होगा। मानव को प्रकृति का साथी बनना होगा तथा अनुकूल मानवीय सभ्यता पर्यावरण संबंधित समस्याओं को दूर कर खुशहाल समृद्धि टिकाऊ भविष्य का निर्माण करेगी ऐसी सोच रखनी होगी।
बात अगर माननीय केंद्रीय रक्षा मंत्री द्वारा दिनांक 21 जून 2022 को एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी, विज्ञान के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकीयों को खोजने तथा ऐसे नवोन्मेषण करने की अपील की जो पर्यावरण के अनूकूल मूल्यों को बनाये रखेंगे। उन्होंने कहा, हमें प्रकृति का साथी बन जाना चाहिए तथा जीवों के साथ साथ प्रकृति के निर्जीव तत्वों के प्रति भी श्रद्धा और सम्मान की भावना रखनी चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि धीरे धीरे मानव सभ्यता हमारे समय की पर्यावरण संबंधित समस्याओं को दूर करेगी तथा हम सभी के लिए एक खुशहाल, समृद्ध, न्यायसंगत तथा टिकाऊ भविष्य का निर्माण करेगी।
उन्होंने पर्यावरण के क्षरण पर चिंता जताई और कहा कि पृथ्वी के इकोसिस्टम का निर्माण इस तरह से किया गया है कि किसी एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में प्रभाव केवल उसी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता बल्कि यह पूरे विश्व को सन्निहित कर लेता है। उन्होंने कहा, उदाहरण के लिए हमारे सामने कार्बन उत्सर्जन का मामला है। भले ही यह एक देश में हो रहा हो, निश्चित रूप से यह अन्य सभी देशों को प्रभावित कर रहा है। यही कारण है कि वैश्विक पर्यावरण सुरक्षा के संबंध में, सभी शिखर सम्मेलन, सम्मेलन, संधियां तथा समझौते, चाहे वह रियो समिट हो या डेजर्टिफिकेशन से मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन, क्योटो प्रोटोकॉल या पेरिस सम्मेलन, वे सभी समान रूप से एक सुर में कार्य करने के लिए विश्व के सभी देशों का मार्गदर्शन करते हैं। एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में, भारत ने अपनी परंपरा और संस्कृति से निर्देशित होकर निरंतर मृदा संरक्षण क लिए कार्य किया है। केवल मिट्टी पर ध्यान केंद्रित करने के जरिये मृदा संरक्षण नहीं किया जा सकता। हमने इससे जुड़े सभी घटकों जैसे वनीकरण, वन्य जीवन, आर्द्र भूमि आदि को संरक्षित करने और बढ़ाने का कार्य किया है। केवल सामूहिक प्रयासों से ही सामूहिक समस्याओं का निदान संभव होगा। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम सभी मिट्टी और पर्यावरण की रक्षा करने का प्रयास करें और एक साथ मिल कर एक बेहतर विश्व की ओर बढ़ें।
उन्होंने मिट्टी बचाओ अभियान को उम्मीद की किरण बताया क्योंकि इससे यह विश्वास पैदा होता है कि इस अभियान के माध्यम से विश्व भर के लोग आने वाले समय में मृदा के स्वास्थ्य को बनाये रखने में योगदान देंगे। उन्होंने कहा कि यह अभियान न केवल मिट्टी की रक्षा करने बल्कि मानव सभ्यता एवं संस्कृति को संरक्षित करने का भी एक प्रयास है।
उन्होंने पर्यावरणीय समस्याओं को दूर करने के लिए प्रेरित करने के अतिरिक्त लोगों को योग के माध्यम से अधिक प्रसन्नचित्त तथा अधिक सार्थक जीवन जीवन जीना सिखाने के लिए किए जा रहे कार्यों के लिए उनकी सराहना की। उन्होंने कहा, वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देकर भारत ने अपनी सीमा के भीतर रहने वाले लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लोगों को अपना परिवार माना है। श्री सद्गुरु ने अपने काम से निश्चित रूप से एक नया पर्यावरण आंदोलन पैदा करने के लिए वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जीवंत बनाया है। उन्होंने कहा, वह मिट्टी बचाओ जैसे अभियानों तथा अध्यात्मिकता के माध्यम से दिव्य संदेश दे रहे हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ मिट्टी और पर्यावरण की रक्षा करें। मानव को प्रकृति का साथी बनना होगा। अनुकूल मानवीय सभ्यता पर्यावरण संबंधित समस्याओं को दूर कर खुशहाल समृद्धि टिकाऊ भविष्य का निर्माण करेगी सराहनीय सोच है।
— किशन सनमुखदास भावनानी